Tuesday, May 12, 2009

दुष्कर्म मामले में डाक्टर का बयान अंतिम नहीं

मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि दुष्कर्म मामले में डाक्टर का बयान अंतिम नहीं माना जा सकता और विरोधाभासी मेडिकल रिपोर्ट के बावजूद भी दुष्कर्म की पुष्टि की जा सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने अभियुक्त पर 50 हजार का जुर्माना लगाते हुए पांच साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई। जुर्माने की रकम पीड़िता को दी जाएगी। कोर्ट ने यह फैसला 7 मई को दिया।1987 में हुए इस दुष्कर्म कांड के अभियुक्त सुरेश जाधव को सतारा की एक सत्र अदालत ने 1989 में बरी कर दिया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार जाधव ने कक्षा सात में पढ़ने वाली 11 वर्षीय किशोरी से दुष्कर्म किया था। जाधव को किशोरी के परिवार वाले अच्छी तरह जानते थे। घटना के दिन पीड़िता के बड़े भाई ने जाधव से अपनी साइकिल पर किशोरी को घर छोड़ने को कहा, लेकिन जाधव पीड़ित छात्रा को घर छोड़ने के बजाए अपने घर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। लेकिन सुनवाई अदालत ने पाया कि डाक्टर के सबूतों के अनुसार कौमार्य झिल्ली फटी नहीं थी और पीड़ित छात्रा के शरीर पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे। इस आधार पर अदालत ने जाधव को बरी कर दिया जिसके बाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गई।वर्ष 2007 में हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने इस फैसले को पलटते हुए जाधव को दोषी करार दिया। जाधव ने इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जिसने हाईकोर्ट को इस मामले में नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।

सात मई को दिए फैसले में मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार तथा एससी धर्माधिकारी की खंडपीठ ने एक बार फिर निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और जाधव को दोषी ठहराया।हाईकोर्ट ने कहा कि डाक्टर ने कहा है कि किशोरी की कौमार्य झिल्ली पर कोई चोट नहीं पहुंची है। लेकिन डाक्टर ने अन्य जगह पर स्वीकार किया है कि कौमार्य झिल्ली के फटे बिना भी यौन हमला हो सकता है। पीठ ने कहा कि डाक्टर के बयान पर जरूरत से अधिक विश्वास किया गया लेकिन 'दुष्कर्म साबित करने के लिए डाक्टर का बयान अंतिम परीक्षण नहीं है।'पीठ ने कहा कि बाकी सभी के बयान अपराध को साबित करते हैं.. अन्य गवाहों ने पीड़िता के मामले की पूरी तरह पुष्टि की है।' अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि एक छोटी बच्ची जाधव को फंसाने के लिए क्यों झूठी कहानी गढ़ेगी। हालांकि अपराध के घटने को काफी वक्त बीत जाने के कारण मामले में कुछ रियायत बरतते हुए अदालत ने आरोपी को अधिकतम सात साल के बजाय पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने जाधव पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने कहा कि यह राशि बतौर मुआवजा पीड़िता को दी जाएगी।

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