Thursday, June 4, 2009

फाँसी का कठोर दंड

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू के कुछ ताजे फैसलों और टिप्पणियों पर संसद में गंभीरता से विचार की जरूरत है। विद्वान न्यायाधीश हाल के वर्षों में आर्थिक विकास के साथ बढ़ते भ्रष्टाचार, मासूम महिलाओं की नृशंस हत्या जैसे अपराधों के लिए मृत्युदंड को ही अंतिम अस्त्र बता रहे हैं। उनकी चिंता स्वाभाविक है। भ्रष्टाचार में लिप्त नेता, अफसर और अपराधी पहले तो न्याय की सुनवाई के नाम पर बरसों निकाल देते हैं।
इसके बाद प्रमाणित होने पर छोटी-मोटी सजा भुगत लेते हैं। इससे विभिन्न वर्गों में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसी तरह दहेज हत्या के मामलों में भी क्रूर अत्याचारी जमानत लेकर खुलेआम घूमते हैं और कभी-कभी तो पुनः नया शिकार खोज लेते हैं। एक मोटे गैर सरकारी अनुमान के अनुसार भारत में हर चार घंटे में दहेज हत्या की एक घटना प्रकाश में आने लगी है। न्यायमूर्ति काटजू ने हरियाणा में एक पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा महिला को जलाकर मार दिए जाने संबंधी गंभीर प्रकरण में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति ने कहा कि 'ऐसे लोग किसी रियायत के काबिल नहीं हैं। पत्नी को जलाकर मार देने वाले पतियों को फाँसी पर लटका देना चाहिए।' दहेज हत्या के मामले में कड़ी सजा के प्रस्तावों पर पिछले कुछ वर्षों से विचार-विमर्श चल रहा है। दो वर्ष पहले राष्ट्रीय विधि आयोग ने दहेज हत्या के मामलों में सजा के वर्तमान कानूनी प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश की थी। इस समय सात साल की सजा का प्रावधान है। विधि आयोग ने दंड की अवधि दस साल करने की सिफारिश की थी। साथ ही यह भी कहा था कि बहुत ही असामान्य-अमानवीय मामलों में ही मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। लेकिन अब तक कानूनों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। मानव अधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाने वाले तो हत्यारों और आतंकवादियों तक को फाँसी दिए जाने का विरोध करते हैं। नतीजा यह है कि दहेज हत्या या पति तथा परिजनों द्वारा सताए जाने पर महिलाओं की आत्महत्या की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। वास्तव में ये आत्महत्याएँ भी हत्या के रूप में ही मानी जानी चाहिए। लगभग 15 हजार दहेज हत्या के मामले हर साल सामने आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय से कठोरतम दंड, कानूनों में भी आवश्यक फेरबदल तथा सामाजिक जागरूकता के लिए व्यापक अभियान की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति काटजू की टिप्पणी के बाद सरकार और संसद को यथाशीघ्र इस मुद्दे पर बड़ी क्रांतिकारी पहल करनी चाहिए।

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