अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी मान लिया है कि पाकिस्तान की धार्मिक कामों में लगे होने का दावा करने वाली संस्था जमात उल दावा प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन लश्कर ए तोइबा का ही एक अंग है या इसका ही अवतार है और इस संगठन से संबंधित चार आतंकवादी नेताओं को भी मुंबई धमाकों के सिलसिले में प्रतिबंधित संगठनों और नेताओं की सूची में शामिल किया गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक समिति ने इन नेताओं को उस सूची में शामिल किया है जिसमें अल कायदा और तालिबान से संबंधित लोगों और प्रतिबंधित संगठनों को शामिल किया गया है। ऐसा होने के बाद इन लोगों और संगठनों पर कई तरह के प्रतिबंध लागू होते होंगे। इन लोगों के देश, विदेशों में यात्रा करने पर पाबंदी लगेगी, ये लोग वित्तीय मदद एकत्र नहीं कर सकेंगे और इनकी जायदाद भी जब्त की जा सकती है।
हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति के इस फैसले से खुश हो सकते हैं लेकिन मूल प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि क्या इस कार्रवाई के बाद इन आतंकवादियों के यात्रा करने, हथियार पाने और रखने, नए चरमपंथी हमलों के लिए पैसा एकत्र करने की क्षमता पर सचमुच रोक लगेगी? इन लोगों और इनके संगठनों को पाकिस्तान में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो सहायता मिलती रही है क्या वह पूरी तरह से रुक जाएगी? इस मामले में पाकिस्तान सरकार क्या पूरी तरह से पारदर्शी रवैया अपनाएगी क्योंकि प्रतिबंधों की बहुत सारी स्थितियों को लागू करने की जिम्मेदारी भी उसी पर होगी? इस मामले में अब तक हमारा पिछला अनुभव क्या रहा है? क्या कभी पाकिस्तान ने माना कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा का कारण पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन हैं? हमने देश में होने वाले आतंकवादी हमलों की समस्या को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग किया और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण किया ताकि हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राजी कर सकें? क्या अन्य बड़े देश भारत की इस लड़ाई को अपनी लड़ाई समझकर लड़ेंगे? तब इस कार्रवाई से हमें क्या फायदा होगा?
हालाँकि इस बात को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डाला है। इस दबाव के चलते ही सुरक्षा परिषद को यह कदम उठाना पड़ा। जिन लोगों को प्रतिबंधित किया गया है उनमें हाफिज मोहम्मद सईद, जकी-उर रहमान लखवी, हाजी मोहम्मद अशरफ और महमूद मोहम्मद अहमद बाहाजीक शामिल हैं। इनमें से तीन का संबंध लश्कर ए तोइबा से और मोहम्मद सईद का संबंध पाकिस्तानी संगठन जमात उद दावा से बताया जा रहा है। क्या लश्कर ए तोइबा और जमात उद दावा अलग अलग हैं? जबकि भारत में कहा जाता है कि लश्कर पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद इसे ही पाकिस्तान में जमात उद दावा के नाम से चलाया जा रहा है? लश्कर से जुड़े रहे नेता अब इस जमात से जुड़े हैं और इन पर लगाम से ही आतंकवाद पर रोक लगेगी? अभी तक मुंबई हमलों के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तोइबा और जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ दिखावे के तौर कर जो कार्रवाई की है, क्या उसका कोई ठोस परिणाम सामने आएगा? मीडिया की खबरों के मुताबिक लश्कर के कई आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में भी रहते हैं जो जिला कमांडर के रूप में समय समय पर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। जब हम भारत में इन पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं तो क्या पाकिस्तान, अमेरिका या सुरक्षा परिषद पाकिस्तान में इनकी कार्रवाई को नियंत्रित कर सकते हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी की गिरफ्तारी कोई ठोस या प्रभावी कार्रवाई नहीं है। अंतरराष्ट्रीय दबाव ढीला पड़ने के साथ ही इन्हें फिर रिहा कर दिया जाएगा, जैसा कि पहले भी हो चुका है। क्या इस मामले में अमेरिका कोई अहम भूमिका निभाएगा? क्या अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता देना बंद कर सकता है? पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अल कायदा व अन्य आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले सीआईए के पूर्व विश्लेषक माइकल श्वेयर का मानना है कि लश्कर ने अपने मिशन के प्रति नजरिया बदल लिया है। यह तेजी से एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बन चुका है। इस पर नकेल कसने में अमेरिका की सक्रिय भूमिका जरूरी है। क्या अमेरिका इतनी सक्रिय भूमिका निभाएगा? यह संगठन पाक में अब जमात-उद-दावा के नाम से संचालित है और यह अपने सदस्यों की संख्या, गतिविधियों का दायरा और धार्मिक कट्टरपंथियों में अपनी पैठ लगातार बढ़ा रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान से जमात पर तुरंत प्रतिबंध लगाने को कहा है पर क्या पाकिस्तानी सरकार जमात पर प्रतिबंध लगाएगी? प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी अगर ऐसा करने को बाध्य भी होतेहैं तो क्या पाकिस्तान में इन कट्टरपंथी ताकतों के हिमायती इसे पूरी सख्ती से लागू होने देंगे? ऐसे बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्न हैं जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में हैं तो क्या हम इन प्रतिबंधों के परिणामों के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं? जबकि इस मामले में जमात का क्या कहना है? जमात का कहना है कि यह लश्कर से अलग है और पूरी तरह से एक धार्मिक संगठन है जिसका आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है। यह भारत सरकार का प्रोपेगैंडा (प्रचार) है। पहले भारत लश्कर ए तोइबा का नाम ले रहा था और बाद में इसने जमात उद दावा का नाम लेना शुरु किया। वे सबूत पेश करें सब स्पष्ट हो जाएगा। जमात ने दावा किया है कि हमने पाकिस्तान में न्यायालय में ये साबित किया है और न्यायालय ने भी माना कि लश्कर ए तैयबा और जमात उद दावा भिन्न हैं। क्या यही असलियत है? इस मामले पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति के फैसले से खुश हैं। इस कार्रवाई के बाद इन आतंकवादियों की यात्रा करने, हथियार पाने और रखने, नए चरमपंथी हमलों के लिए पैसा एकत्र करने की क्षमता पर रोक लगेगी। पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कोशिशें रंग ला रही हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके साथ तथ्य यह भी जुड़ा कि यह सभी तभी संभाव हो पाएगा जब अमेरिका, पाकिस्तान की नाक मे नकेल डाले क्योंकि पाकिस्तान तो संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कुछ और तथा अपनी जमीन पर अलग-अलग राग अलापता रहेगा।
हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति के इस फैसले से खुश हो सकते हैं लेकिन मूल प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि क्या इस कार्रवाई के बाद इन आतंकवादियों के यात्रा करने, हथियार पाने और रखने, नए चरमपंथी हमलों के लिए पैसा एकत्र करने की क्षमता पर सचमुच रोक लगेगी? इन लोगों और इनके संगठनों को पाकिस्तान में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो सहायता मिलती रही है क्या वह पूरी तरह से रुक जाएगी? इस मामले में पाकिस्तान सरकार क्या पूरी तरह से पारदर्शी रवैया अपनाएगी क्योंकि प्रतिबंधों की बहुत सारी स्थितियों को लागू करने की जिम्मेदारी भी उसी पर होगी? इस मामले में अब तक हमारा पिछला अनुभव क्या रहा है? क्या कभी पाकिस्तान ने माना कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा का कारण पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन हैं? हमने देश में होने वाले आतंकवादी हमलों की समस्या को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग किया और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण किया ताकि हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राजी कर सकें? क्या अन्य बड़े देश भारत की इस लड़ाई को अपनी लड़ाई समझकर लड़ेंगे? तब इस कार्रवाई से हमें क्या फायदा होगा?
हालाँकि इस बात को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डाला है। इस दबाव के चलते ही सुरक्षा परिषद को यह कदम उठाना पड़ा। जिन लोगों को प्रतिबंधित किया गया है उनमें हाफिज मोहम्मद सईद, जकी-उर रहमान लखवी, हाजी मोहम्मद अशरफ और महमूद मोहम्मद अहमद बाहाजीक शामिल हैं। इनमें से तीन का संबंध लश्कर ए तोइबा से और मोहम्मद सईद का संबंध पाकिस्तानी संगठन जमात उद दावा से बताया जा रहा है। क्या लश्कर ए तोइबा और जमात उद दावा अलग अलग हैं? जबकि भारत में कहा जाता है कि लश्कर पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद इसे ही पाकिस्तान में जमात उद दावा के नाम से चलाया जा रहा है? लश्कर से जुड़े रहे नेता अब इस जमात से जुड़े हैं और इन पर लगाम से ही आतंकवाद पर रोक लगेगी? अभी तक मुंबई हमलों के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तोइबा और जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ दिखावे के तौर कर जो कार्रवाई की है, क्या उसका कोई ठोस परिणाम सामने आएगा? मीडिया की खबरों के मुताबिक लश्कर के कई आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में भी रहते हैं जो जिला कमांडर के रूप में समय समय पर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। जब हम भारत में इन पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं तो क्या पाकिस्तान, अमेरिका या सुरक्षा परिषद पाकिस्तान में इनकी कार्रवाई को नियंत्रित कर सकते हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी की गिरफ्तारी कोई ठोस या प्रभावी कार्रवाई नहीं है। अंतरराष्ट्रीय दबाव ढीला पड़ने के साथ ही इन्हें फिर रिहा कर दिया जाएगा, जैसा कि पहले भी हो चुका है। क्या इस मामले में अमेरिका कोई अहम भूमिका निभाएगा? क्या अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता देना बंद कर सकता है? पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अल कायदा व अन्य आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले सीआईए के पूर्व विश्लेषक माइकल श्वेयर का मानना है कि लश्कर ने अपने मिशन के प्रति नजरिया बदल लिया है। यह तेजी से एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बन चुका है। इस पर नकेल कसने में अमेरिका की सक्रिय भूमिका जरूरी है। क्या अमेरिका इतनी सक्रिय भूमिका निभाएगा? यह संगठन पाक में अब जमात-उद-दावा के नाम से संचालित है और यह अपने सदस्यों की संख्या, गतिविधियों का दायरा और धार्मिक कट्टरपंथियों में अपनी पैठ लगातार बढ़ा रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान से जमात पर तुरंत प्रतिबंध लगाने को कहा है पर क्या पाकिस्तानी सरकार जमात पर प्रतिबंध लगाएगी? प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी अगर ऐसा करने को बाध्य भी होतेहैं तो क्या पाकिस्तान में इन कट्टरपंथी ताकतों के हिमायती इसे पूरी सख्ती से लागू होने देंगे? ऐसे बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्न हैं जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में हैं तो क्या हम इन प्रतिबंधों के परिणामों के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं? जबकि इस मामले में जमात का क्या कहना है? जमात का कहना है कि यह लश्कर से अलग है और पूरी तरह से एक धार्मिक संगठन है जिसका आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है। यह भारत सरकार का प्रोपेगैंडा (प्रचार) है। पहले भारत लश्कर ए तोइबा का नाम ले रहा था और बाद में इसने जमात उद दावा का नाम लेना शुरु किया। वे सबूत पेश करें सब स्पष्ट हो जाएगा। जमात ने दावा किया है कि हमने पाकिस्तान में न्यायालय में ये साबित किया है और न्यायालय ने भी माना कि लश्कर ए तैयबा और जमात उद दावा भिन्न हैं। क्या यही असलियत है? इस मामले पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति के फैसले से खुश हैं। इस कार्रवाई के बाद इन आतंकवादियों की यात्रा करने, हथियार पाने और रखने, नए चरमपंथी हमलों के लिए पैसा एकत्र करने की क्षमता पर रोक लगेगी। पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कोशिशें रंग ला रही हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके साथ तथ्य यह भी जुड़ा कि यह सभी तभी संभाव हो पाएगा जब अमेरिका, पाकिस्तान की नाक मे नकेल डाले क्योंकि पाकिस्तान तो संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कुछ और तथा अपनी जमीन पर अलग-अलग राग अलापता रहेगा।
इसे अमेरिकी दबाव का ही नतीजा मान सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र में पाक के दूत अब्दुल्लाह हुसैन हारून को कहना पड़ा कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव पारित करे तो जमात-उद-दावा पर पाबंदी लगाई जा सकती है। सुरक्षा परिषद में जारी आतंकवाद पर बहस में भारत के बयान के बाद पाकिस्तानी दूत ने जमात पर नकेल कसने के संकेत दिए। भारत ने आत्मरक्षा का हवाला देते हुए परिषद से अंतराष्ट्रीय दबाव बनाने की अपील की थी ताकि पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादी शिविरों को उखाड़ फेंके। पाकिस्तान सरकार ने ये तो माना है कि लश्कर के ही लोग जमात-उद-दावा चला रहे हैं। मगर उसे ये डर भी सता रहा है कि जमात के गढ़ में कार्रवाई करने से कहीं लाल मस्जिद जैसे हालात न पैदा हो जाएँ और सरकार को कट्टरपंथियों का गुस्सा न झेलना पड़े। प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने मुल्तान में कहा कि लश्कर पर 2003 में प्रतिबंध लगाया गया था। यदि उसके पदाधिकारी कोई और संगठन खड़ा कर लेते हैं तो उसपर भी बैन लगेगा। इससे भारत पर हुए आतंकी हमले और भारत सरकार के दबाव का कोई लेना देना नहीं है। इसी कारण से पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी ने भी कहा कि भारत के कहने पर नहीं बल्कि जाँच पूरी होने के बाद आतंकवादी गतिविधियों का दोषी पाए जाने पर जमात-उद-दावा पर कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जमात-उद-दावा के आतंकवादी संपर्को की जाँच कर रहा है और जाँच पूरी होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। सुरक्षा परिषद में बहस के दौरान भारतीय विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद ने कहा था कि जिस देश की जमीन पर मुंबई हमलों की योजना बनी और तामील हुई, उसे फौरन कार्रवाई करनी चाहिए। 15 सदस्यीय काउंसिल को अहमद ने बताया था कि दावा और लश्कर जैसे संगठनों को इंटरनेशनल लेवल पर बेनकाब करके इनके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। भारत और अमेरिका का कहना है कि मुंबई आतंकवादी हमलों में लश्कर-ए-तोइबा और उसके सरगनाओं का हाथ है। मंगलवार को भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से औपचारिक रूप से जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करने तथा उसके सरगना हाफिज मोहम्मद सईद को सुरक्षा परिषद की अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल किए जाने की माँग की थी। भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के समक्ष झुकते हुए संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत ने भी कहा कि वह जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध लगाएगा और मुंबई हमलों में संलिप्तता के लिए उसके सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई करेगा। पाकिस्तानी राजदूत अब्दुल्ला हुसैन हारून ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि संगठन संपत्तियाँ जब्त की जाएँगी। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान सरकार मुंबई हमलों में अपने नागरिकों और संगठनों की संलिप्तता संबंधी आरोपों की जाँच पहले से ही शुरू कर चुकी है। पिछले दो दिनों में पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ अपनी गंभीरता को दिखाने के लिए मुजफ्फराबाद के ठिकानों पर छापे मारते हुए लश्कर कमांडर लखवी और जैश मोहम्मद चीफ अजहर मसूद पर शिकंजा कसा है। मगर ऐसा पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने दिखावे के लिए इस तरह के कदम उठाए हों। सुरक्षा परिषद में जारी एक नोट में कहा गया है कि इसके पहले मई 2008 और अप्रैल 2006 में भी अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की तरफ से इस संगठन को प्रतिबंधित करने के लिए प्रस्ताव जारी किया गया था लेकिन पाकिस्तान के दोस्त चीन ने सुरक्षा परिषद में इस पर वीटो का इस्तेमाल कर दिया था। क्या इस बार हमारी सक्रियता के ठोस परिणाम सामने आ पाएँगे?
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