Friday, October 31, 2008

त्यौहार निकलते ही फुस्स हुआ सोना

त्यौहार निकलने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट के चलते सोने का पटाखा फुस्स हो गया। इसी की देखा-देखी चांदी भी फिसल गई। आभूषणों की मांग घटने से शुक्रवार को स्थानीय सराफा बाजार में यह पीली धातु 620 रुपये लुढ़ककर 11 हजार 950 रुपये पर आ गई। चांदी भी 750 रुपये गिरकर 16 हजार 550 रुपये प्रति किलो पर बंद हुई।कमजोर ग्लोबल रुझान और दीवाली के खत्म होने से सोने-चांदी की मांग कम गई। निवेशक इस समय मुद्रास्फीति में कमी और सकारात्मक संकेतों को देखकर शेयर बाजारों में धन लगाने को उतावले हो रहे हैं। इसके लिए नकदी जुटाने के लिए वे बहुमूल्य धातुओं की बिक्री कर रहे हैं।लंदन में 1983 के बाद से सोने के भावों का रुख सर्वाधिक मासिक गिरावट की ओर है। यहां मजबूत होते डालर के कारण सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की मांग घट गई। लंदन में सोने के भाव इस महीने 17 फीसदी लुढ़क चुके हैं। यह फरवरी 1983 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। यहां सोना 11.63 डालर घटकर 726.50 डालर प्रति औंस रह गया। चांदी के दाम भी 51 सेंट घटकर 9.28 डालर प्रति औंस हो गए।सोना आभूषण के भाव 620 रुपये का गोता लगाकर 11 हजार 800 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए। गिन्नी 10 हजार 500 रुपये प्रति आठ ग्राम पर अपरिवर्तित रही। चांदी साप्ताहिक डिलीवरी 140 रुपये मजबूत होकर 16 हजार 420 रुपये हो गई। चांदी सिक्का 200 रुपये चढ़कर 27000-27100 रुपये प्रति सैकड़ा पर बंद हुआ।

बीमा विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी

सरकार ने शुक्रवार को बहुप्रतीक्षित व्यापक बीमा विधेयक को मंजूरी दे दी जिसके तहत निजी क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का प्रावधान है। सरकार ने यह भी कहा कि दिसंबर में इस विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा।कैबिनेट की कल रात हुई बैठक के बारे में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज सुबह बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंत्रिसमूह की सिफारिशों के आधार पर बीमा अधिनियम 1938, साधारण बीमा कारोबार अधिनियम 1972 और बीमा नियामक एवं विकास अधिनियम 1999 में संशोधन के लिए बीमा [संशोधन] विधेयक 2008 को राज्यसभा में पेश करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।चिदंबरम ने कहा कि हालंाकि समय की कमी के कारण संभव है कि संसद के इस सत्र में विधेयक पारित न हो पाए। उन्होंने कहा कि संशोधन के जरिए कानून के पुराने और बेकार हो चुके प्रावधानों को हटाया जाएगा और इसमें ऐसे प्रावधानों को शामिल किया जाएगा कि बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकार ं[आईआरडीए] प्रभावी और बेहतर तरीके से काम कर सके।चिदंबरम ने कहा कि मंत्रिमंडल ने जीवन बीमा निगम [संशोधन] विधेयक 2008 को भी लोकसभा में पेश करने का फैसला किया है।

Tuesday, October 28, 2008

राजनीति पर भारी पड़ी रोटी !

कुछ लोगों के लिए राजनीति भले ही कमाई का जरिया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के एक पार्षद ने आर्थिक तंगी के चलते अपने पद से इस्तीफा देकर तृतीय श्रेणी शिक्षाकर्मी की नौकरी स्वीकार कर ली है।


छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर के पार्षद रवींद्र चतुर्वेदी ने ऐसे समय में इस्तीफा दे कर शिक्षाकर्मी की नौकरी शुरू की है, जब राज्य में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में कई पार्षद विधायक बनने के लिए चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।
राज्य में ऐसे उम्मीदवार भी बहुत हैं, जो नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़ रहे हैं। पार्षद रवींद्र के इस्तीफे से राजनीतिक गलियारे में लोग चकित हैं, लेकिन बिलासपुर समेत राज्य के दूसरे हिस्सों में पार्षद के इस कदम का आम लोगों ने स्वागत किया गया है।
नहीं सुहाई राजनीति : कानून और इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने वाले रवींद्र चतु्वेदी पिछले 9 साल से पार्षद थे। पिछले चुनाव में उनके खिलाफ राज्य के वित्तमंत्री और सांसद ने प्रचार किया था।
तमाम विरोधों के बावजूद रवींद्र ने दूसरे सभी उम्मीदवारों को हराकर बिलासपुर नगर निगम में अपनी जगह सुनिश्चित की थी, लेकिन जनसेवा का मंत्र लेकर राजनीति में आए रवींद्र को आर्थिक समस्याओं के आगे घुटने टेकने पड़े। शिक्षक माता-पिता की संतान रवींद्र कहते हैं अच्छे लोगों को भी राजनीति में आना चाहिए। यही सोच कर मैं राजनीति में आया। पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पार्षद के चुनाव में खड़ा हुआ और जनता ने साबित कर दिया कि धन और बाहुबल के बदौलत ही चुनाव नहीं जीते जाते। अगली बार रवींद्र को कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया और इस बार भी वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे, लेकिन पार्षद के पद पर रहते हुए रवींद्र के लिए अपना घर चलाना भी मुश्किल हो गया।रवींद्र कहते हैं मेरे पास आय का कोई और स्रोत नहीं था और पार्षद के रूप में लगभग 18 घंटे तक जनसेवा करने के बदले मुझे मानदेय के रूप में केवल ढाई हजार रुपए मिलते थे। मेरे पास इतना समय भी नहीं होता था कि मैं कोई और काम कर सकूँ, जिससे मुझे थोड़े पैसे मिल सके।

मुश्किलें : पत्नी और दो बच्चों वाले परिवार का जब गुजारा मुश्किल हो गया तो रवींद्र ने तय किया कि राजनीति को अब अलविदा कह देना चाहिए। इसके बाद जैसे ही उन्हें तृतीय श्रेणी के शिक्षाकर्मी का प्रस्ताव मिला, उन्होंने तत्काल इसे स्वीकार कर लिया और पार्षद पद से इस्तीफा दे दिया।


बेइमानी कर हर महीने लाखों रुपए कमाने की बजाय ईमानदारी से शिक्षाकर्मी की नौकरी करना सबके बस का नहीं है। इसके लिए तो कलेजा चाहिए।

छत्तीसगढ़ की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले समाजवादी चिंतक आनंद मिश्रा कहते हैं रवींद्र चतुर्वेदी का इस्तीफा लोकतंत्र में अनास्था की भी निशानी है। ईमानदार व्यक्ति का पार्षद का पद छोड़कर तृतीय श्रेणी के शिक्षाकर्मी की नौकरी करना संकेत करता है कि राजनीति शायद भले लोगों के लिए नहीं है। रवींद्र के पड़ोस में रहने वालों को इस बात की खुशी है कि उन्होंने रवींद्र जैसा ईमानदार जनप्रतिनिधि चुना था, लेकिन अब उन्हें इस बात की चिंता भी सता रही है कि नगर निगम में उनकी आवाज अब कौन सुनेगा। कुदुदंड इलाके के संतोष कुमार कहते हैं बेइमानी कर हर महीने लाखों रुपए कमाने की बजाय ईमानदारी से शिक्षाकर्मी की नौकरी करना सबके बस का नहीं है। इसके लिए तो कलेजा चाहिए।

व्यवस्था पर सवाल : बिलासपुर नगर निगम में ही कांग्रेस की पार्षद शाहजादी कुरैशी पूरे मामले के लिए व्यवस्था को दोष देती हैं। उनकी माँग है कि पार्षदों को भी विधायक और सांसदों की तरह सम्मानजनक वेतन मिले।
शाहजादी कहती हैं किसी पार्षद से जनता की अपेक्षा बहुत होती है। शहर में होने वाले आयोजनों में अगर पार्षद केवल चंदा ही देना चाहे तो रकम हर माह 10-20 हजार रुपए तक पहुँच जाएगी। ऐसे में रवींद्र का त्यागपत्र हमारी पूरी व्यवस्था सोच को ही कटघरे में खड़ा करता है।
...लेकिन अब रवींद्र इन बातों से अलग-थलग बिलासपुर शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक गाँव बेलटुकरी के प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के बीच मगन हैं, जहाँ उनकी पहली नियुक्ति हुई है। यहाँ उन्हें पहली कक्षा के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा मिला है। रवींद्र कहते हैं जब मैंने पहले दिन स्कूल में बच्चों के कमरे में कदम रखा तो डर था कि अपना दायित्व ठीक से निभा पाऊँगा भी या नहीं, लेकिन पहले दिन से ही सब कुछ ठीक हो गया और अब मैं यहाँ खुश हूँ। रवींद्र की पत्नी भी खुश हैं कि अब उनके पति को पार्षद के रूप में मिलने वाले ढाई हजार रुपए के बजाय शिक्षाकर्मी के तौर पर वेतन के रूप में साढ़े चार हजार रुपए मिलेंगे।

हत्या काल्पनिक पति की, सजा असली

जापान में एक महिला को बहुचर्चित वीडियो गेम में कथित तौर पर अपने काल्पनिक पति की हत्या करने पर पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। 43 वर्षीया महिला ऑनलाइन वीडियो गेम 'मेपल स्टोरी' में काल्पनिक पति के अचानक तलाक दे देने से आहत थी।


पुलिस के अनुसार महिला ने गैरकानूनी ढंग से उस व्यक्ति की, जिसके साथ वह काल्पनिक पति के तौर पर वीडियो गेम खेलती थी, लॉग-इन जानकारी हासिल करने के बाद उस काल्पनिक पति के किरदार को ही मार दिया। अगर ये इल्जाम साबित हो जाते हैं तो महिला को पाँच साल की सजा और पाँच हजार डॉलर का जुर्माना हो सकता है।
इल्जाम : महिला पियानो शिक्षिका हैं और उन पर गैरकानूनी ढंग से अपने काल्पनिक पति के कम्प्यूटर को ऐक्सेस करने और उसके डाटा को उलट-पुलट करने का इल्जाम है।
महिला को बुधवार को उसके घर से गिरफ्तार किया गया है और मियाजाकी से एक हजार किलोमीटर दूर सोपोरो लाया गया है, जहाँ उनके काल्पनिक पति रहते हैं। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार सोपोरो के पुलिस अधिकारी का कहना है कि महिला ने मई में काल्पनिक पति के आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल कर गेम को खोल कर उस किरदार की हत्या कर दी थी। महिला ने पूछताछ करने वाले अधिकारियों को बताया बगैर किसी चेतावनी के मुझे अचानक तलाक दे दिया गया और इस वजह से मैं काफी आहत हुई। मेपल स्टोरी एक ऑनलाइन वीडियो गेम है, जिसे कोरिया ने बनाया है और ये खेल जापान में काफी खेला जाता है।

Saturday, October 25, 2008

आरुषि की मेडिको रिपोर्ट से छेड़छाड़ का संदेह

नोएडा। बहुचर्चित आरुषि हत्याकांड का मेडिको लीगल रजिस्टर जिला अस्पताल से गायब हो गया है। यह खुलासा मामले की तफ्तीश कर रही सीबीआई टीम द्वारा शनिवार को अस्पताल में मारे गए छापेमारी के दौरान हुआ।सीबीआई को संदेह है कि आरुषि की मेडिको लीगल रिपोर्ट से छेड़छाड़ की गई है। छापेमारी के दौरान रजिस्ट्रर न मिलने से सीबीआई का शक और गहरा गया है। अगर आरुषि की मेडिकल रिपोर्ट में सचमुच छेड़छाड़ की गई होगी तो इस हत्याकांड में एक बार फिर नया मोड़ आ जाएगा।छापेमारी के लिए सीबीआई की चार सदस्यीय टीम ने जिला अस्पताल के पैथोलॉजिस्ट की अलमारी तोड़कर मेडिको-लीगल रजिस्टर तलाशने का प्रयास किया, लेकिन अलमारी से 2008 का रजिस्टर नदारद मिला। इससे सीबीआई अधिकारियों को शक और गहरा हो गया है। सूत्रों के अनुसार सीबीआई को नोएडा पुलिस से जो मेडिको लीगल रिपोर्ट मिली है, उसमें बहुत ज्यादा ओवर राइटिंग [काट-पीट कर सुधार] की गई है। यही सीबीआई की शक की मुख्य वजह है। लिहाजा वह मेडिको-लीगल रजिस्टर देखकर अपना शक दूर करना चाह रही थी।सूत्रों के अनुसार सीबीआई टीम सुबह 10:30 बजे ही अस्पताल पहुंच गई थी। सुबह ओपीडी चालू होने के कारण मेडिको लीगल संबंधी रिपोर्ट की छानबीन चार बजे के बाद की गई। इस संबंध में सीबीआई की टीम ने सीएमएस एससी सिंघल से आरुषि के मेडिको लीगल रिपोर्ट के बारे में पूछताछ की। इसके बाद जिला अस्पताल की पैथोलोजिस्ट की आलमारी की छानबीन की गई। आलमारी से वर्ष 2008 का वह रजिस्टर गायब मिला, जिसमें आरुषि की मेडिको लीगल रिपोर्ट दर्ज है।

दरअसल इस रिपोर्ट के जरिए सीबीआई यह जानने का प्रयास कर रही है कि उस रात आरुषि के साथ दुष्कर्म का प्रयास हुआ था या नहीं। सीबीआई को यह शक हत्या के बाद पुलिस द्वारा ली गई उसके शव की फोटो देखकर हुआ। इसका पता आरुषि की मेडिको लीगल रिपोर्ट से ही चल सकता है।सीबीआई को यह भी शक है कि जिला अस्पताल की पैथोलॉजिस्ट, आरुषि हत्याकांड के समय छुट्टी पर गई हुई थीं। ऐसे में हत्याकांड के बाद आरुषि से संबंधित स्लाइड जांच के दौरान अस्पताल कैसे पहुंची। सीबीआई की चार सदस्यीय टीम के साथ छापेमारी में सिटी मजिस्ट्रेट, सीएमएस व तीन डॉक्टर भी थे।

दक्षिणपंथी साध्वी हिरासत में

मुंबई के आतंकवाद निरोधक दस्ते [एटीएस] ने मालेगांव और गुजरात के मोदासा में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में एक दक्षिणपंथी साध्वी को सूरत से हिरासत में लिया है।सूरत के पुलिस आयुक्त आर एम एस बरार ने यहां बताया कि मुंबई का एटीएस दल सात दिन पहले सूरत आया और उसने महीदरपुरा इलाके से एक दक्षिणपंथी साध्वी को हिरासत में लिया।बरार ने हालांकि साध्वी का नाम उजागर नहीं किया। एटीएस मालेगांव बम विस्फोट मामले में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन का हाथ होने की जांच कर रहा है। एटीएस के मुताबिक मामले के सभी पहलुओं की जांच की जा रही है और हम फिलहाल यह नहीं कह सकते कि इसके पीछे एक खास संगठन का हाथ है। इस बीच साबरकांठा के पुलिस अधीक्षक आर बी ब्रह्माभट्ट ने कहा कि उन्हें विस्फोट में दक्षिणपंथी हिन्दू संगठन का हाथ होने के बारे में मुंबई एटीएस से कोई सूचना नहीं मिली है।रमजान के महीने में हुए मोदासा बम विस्फोट मामले की जांच ब्रह्माभट्ट ही कर रहे हैं।उल्लेखनीय है कि पावरलूम शहर मालेगांव में 29 सितंबर को हुए विस्फोटों के सिलसिले में बृहस्पतिवार को तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया था।सूत्रों का मानना है कि तीनों को आज नासिक की अदालत में पेश किया जा सकता है। मालेगांव विस्फोटों में पांच लोग मारे गए थे और गुजरात के मोदासा में विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी। बमों को वहां खड़ी की गई मोटरसाइकिलों में रखा गया था। इससे पहले पुलिस ने घटना के संबंध में चार लोगों को इंदौर और देवास से गिरफ्तार किया था जिन्हें बाद में पूछताछ के लिए मुंबई ले जाया गया था।

Thursday, October 23, 2008

घट सकती हैं पेट्रॉल-डीजल की कीमतें

पेट्रॉलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने लोकसभा में गुरुवार को कहा कि अगर तेल की कीमत 61 डॉलर प्रति बैरल के आसपास स्थिर रही तो पे

ट्रॉल और डीजल के दामों में कमी पर विचार किया जा सकता है। इसमें एक हफ्ते का समय लग सकता है। हालांकि उन्होंने बताया कि तेल के गिरते मूल्य के मद्देनजर ओपेक ने शुक्रवार को बैठक बुलाई है, जिसमें उत्पादन कटौती को लेकर फैसला हो सकता है। ऐसे में सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बाद में एनबीटी से बातचीत में देवड़ा ने कहा कि उन्होंने न तो पेट्रॉल और डीजल की कीमतें कम करने का वादा किया है और न गारंटी दी है कि कीमतें घट जाएंगी। फिलहाल दाम घटाने को लेकर न तो कोई प्रस्ताव है और न ही सरकार इस पर विचार कर रही है। ओपेक तेल कटौती को लेकर जो फैसला करेगा, उसे देखा जाएगा। तेल कीमत पर निगाह रखी जाएगी। उसके बाद ही कीमतें घटाने के मुद्दे पर विचार होगा।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बेशक देवड़ा ने कीमतों में कटौती की बात कही है, मगर ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं होगा। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, आरबीआई के गवर्नर सुब्बा राव और तेल कंपनियां इसके पक्ष में नहीं है। क्रेडिट पॉलिसी की तिमाही समीक्षा को लेकर चिदंबरम ने सुब्बा राव से गुरुवार को बातचीत की।
कितनी जरूरत
भारत की तेल जरूरत 15 करोड़, 61 लाख टन सालाना। इसमें घरेलू प्रडक्शन का हिस्सा लगभग 3 करोड़, 41 लाख टन है।
कहां से आता है:-सन 2007-08 में 11 करोड़, 88 लाख टन क्रूड ऑइल आयात किया गया। भारत किसी एक देश से और किसी एक तरह का क्रूड नहीं खरीदता। इसकी एवरेज कॉस्ट निकाली जाती है, जिसमें ट्रांसपोर्ट की लागत भी शामिल होती है। फिलहाल यह 60-61 डॉलर के आसपास है।
कीमतें कैसे घटें:-भारत में पेट्रॉलियम प्रडक्ट्स रियायती दरों पर बेचे जा रहे हैं, जिसका घाटा मार्किटिंग कंपनियां और सरकार उठाती हैं। पहले सरकार का मानना था कि जब क्रूड की औसत लागत 63 डॉलर प्रति बैरल हो जाएगी, तो नुकसान बराबर हो जाएगा। लेकिन रुपये की कीमत गिरने से यह गणित गड़बड़ा गया। अब यह लागत 60 डॉलर है और सरकार कीमतें घटाने की स्थिति में है। आज ओपेक की बैठक होगी। इसमें अगर प्रॉडक्शन घटाने का फैसला लिया गया, तो तेल की कीमतें चढ़ जाएंगी और भारत का गणित फिर से गड़बड़ा जाएगा।

पटाख़ों से धमाका, मृतक संख्या 26 हुई

अस्पताल (फ़ाइल फ़ोटो)
भारत में दीपावली से पटाखों से होनेवाली दुर्घटनाओं में वृद्धि हो जाती ह
राजस्थान के भरतपुर ज़िले के डीग क़स्बे में पटाख़ा फ़ैक्टरी में बुधवार देर रात हुए धमाके में मरने वालों की संख्या बढ़कर 26 हो गई है और 16 अन्य घायलों का इलाज चल रहा है:-मरनेवालों में आठ बच्चे और चार महिलाएँ शामिल हैं. विपक्ष ने मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवज़ा देने की माँग की है. घायलों में से कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है.पुलिस ने इस सिलसिले में विभिन्न धाराओं के तहत सात प्राथमिकी दर्ज की हैं और दस लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है.

नुक़सान:-भरतपुर के पुलिस अधीक्षक रोहित महाजन ने बताया कि इस धमाके के कारण चार मकान ढह गए और देर रात तक राहत और बचाव का कार्य चल रहा था.अधिकारियों का कहना है कि धमाका इतना शक्तिशाली था कि घरों की छतें धस गई और इससे नुक़सान ज़्यादा हुआ.जहाँ धमाका हुआ है उस घर में पटाख़े बनाने का काम चल रहा था. भारत में दीपावली से पहले पटाख़ों से होनेवाली दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो जाती है.प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि धमाके के कारण डीग क़स्बे में दहशत फैल गई. राजधानी जयपुर में 13 मई, 2008 को सात बम धमाके हुए थे जिनमें 63 लोग मारे गए थे.

Wednesday, October 22, 2008

भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठन

भारत में उग्रवादी संगठनों की सूची दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है। आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदातों में किसी नए संगठन का नाम सामने आता है, या फिर कोई नया संगठन हमले की जिम्मेदारी लेता है। जयपुर में हुए बम विस्फोटों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली है, हाँलाकि सुरक्षा एजेंसियों को इस दावे पर पूरा भरोसा नहीं है। यह अल्पज्ञात आतंकी संगठन पहले भी कुछ वारदातों की जिम्मेदारी ले चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय राज्य सरकारों की पुलिस और खुफिया तंत्र से मिली जानकारी के आधार पर इन उग्रवादी और पृथकतावादी संगठनों पर नजर रखता है और इनके खिलाफ सतत कार्रवाई चलती रहती है। केंद्र सरकार विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 2004 के तहत 32 गिरोहों को आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित कर चुकी है।

प्रतिबंधित उग्रवादी संगठ
* बब्बर खालसा इंटरनेशनल
* खालिस्तान कमांडो फोर्स
* खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स
* इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन
* लश्कर-ए-तोइबा/पासवान-ए-अहले हदीस
* जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान
*हरकत-उल- मुजाहिनद्दीन- हरकत-उल- जेहाद-ए-इस्लामी
* हिज्ब-उल-मुजाहिद्दीनर, पीर पंजाब रेजीमेंट
* अल-उमर-इस्लामिक फ्रंट
* यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)
* नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बोडोलेंड (एनडीएफबी)
* पीपल्स लिब्रेशन आमी (पीएलए)
* यूनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (यहव, एनएलएफ)
* पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांग्लेईपाक (पीआरईपीएके)
* कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी)
* कैंग्लई याओल कन्चालुम (केवाईकेएल)
* मणिपुर पीपल्स लिब्रेशन फ्रंट (एमपीएलफ)
* आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स
* नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
* लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई)
* स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया
* दीनदार अंजुमन
*कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपल्स वार, इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* अल बदर
* जमायत-उल-मुजाहिद्दीन
* अल-कायदा
* दुखतरान-ए-मिल्लत (डीईएम)
* तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए)
* तमिल नेशनल रिट्रीवॅल टुप्स (टीएनआरटी)
* अखिल भारत नेपाली एकता समाज (एबीएनईएस)

Saturday, October 18, 2008

छेड़छाड़ से परेशान महिला ने युवक का सिर काटा

छेड़खानी से परेशान एक महिला ने अपने ही गांव के एक युवक का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। वह कटे सिर को साथ ले बाजार में घूमी और उसे लेकर थाने जाते समय पुलिस ने गिरफ्तार किया गया।मामला ईसानगर क्षेत्र के मक्कापुरवा में गुरुवार शाम का है। यहां रहने वाले राजकुमार की पत्नी फूलकुमारी शाम अपने खेत में काम कर रही थी जब उसी गांव के अफजर का बेटा अन्नू [35] उससे छेड़खानी करने लगा। अन्नू हद से बढ़ने लगा तो फूलकुमारी ने उस पर बांके से प्रहार सिर धड़ से अलग कर दिया।बाद खून से लथपथ अन्नू का सिर एक बोरे में लपेटा और थाने की ओर चल दी। जानकारी मिलने पर ग्राम कटौली के पास मौजूद सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।लखीमपुर पुलिस अधीक्षक का कहना है कि घटना के पीछे छेड़छाड़ का मामला सामने आया है। फूलकुमारी ने बताया कि अन्नू तीन महीने से उसके साथ छेड़छाड़ कर रहा था। इस घटना में फूलकुमारी के भी चोटे आई है। मामले की जांच की जा रही है।

दरिंदगी की शिकार बच्चियां मौत के कगार पर

हवस में अंधे हो गए दरिंदों की दरिंदगी के चलते दो लड़कियों की जान पर बन आई है। जयपुर में तो एक अधेड़ हवस के नशे में ऐसा डूबा कि उसे रिश्तों का भी ख्याल नहीं रहा। नाना-नातिन के रिश्ते को दागदार करते हुए पहले उसने 11 साल की मासूम की इज्जत लूटने की कोशिश की। नाकाम रहने पर उसने बच्ची पर केरोसिन उड़ेल आग लगा दी।घटना लाल कोठी स्थित धन्नादास की बगीची क्षेत्र की है। स्थानीय लोगों में उस समय दहशत फैल गई, जब उन्होंने जलती हुई बच्ची को मदद की गुहार लगाते सड़क पर दौड़ते देखा। वह 90 फीसदी जली हालत में अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। घिनौनी हरकत करने वाले 'नाना' को शुक्रवार देर रात गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपी की किराने की दुकान है और बच्ची अपने भाई के साथ सामान लेने उसके दुकान पर गई थी। तभी दुकानदार पर हवस सवार हुई और उसने घिनौनी हरकत कर दी।छिंदवाड़ा में भी ठीक ऐसी ही कहानी सामने आई। बस, यहां किरदार बदल गए। 'नाना' की जगह दो वहशी युवक आ गए और उन्होंने एक युवती को दरिंदगी का शिकार बना डाला। एजेंसी की खबर के मुताबिक, दोनों ने पहले युवती से छेड़छाड़ की थी। इस पर उसने दोनों को डांटा और शिकायत करने की चेतावनी दे डाली। इससे सबक लेने के बजाय वहशी युवकों ने लड़की को उसके ही घर में केरोसिन का तेल डाल कर आग लगा दी। लड़की को 75 प्रतिशत जली अवस्था में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसकी स्थिति गंभीर बतायी जा रही है। पुलिस सूत्रों के अनुसार पीड़िता शिवनगर कालोनी में रहती है। उसने पिछले दिनों छेड़छाड़ किए जाने पर गणेश तिवारी और मोनू उर्फ नवाब को डांटते हुए पुलिस में रिपोर्ट करने की धमकी दे दी थी। इस बात से नाराज दोनों लड़के शुक्रवार को दोपहिया वाहन से लड़की के घर पहुंचे। उस समय घर में अकेला देख कर दोनों ने स्टोव से तेल निकाल कर लड़की पर डाला और आग लगाने के बाद भाग खडे़ हुए। दोनों आरोपी युवक गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

Friday, October 17, 2008

घट सकती है बचत की दर

भारत की बचत दर चालू वित्त वर्ष में घटकर 34 फीसदी पर आने का अनुमान है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बचत की दर में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इकनॉमिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकानमी (सीएमआईई) ने अपनी मासिक समीक्षा में कहा है कि वर्ष 2000-01 में देश की बचत दर 24 फीसदी से कम थी, जो वर्ष 2006-07 में बढ़कर 34.08 फीसदी पर पहुँच गई। बचत दर के वर्ष 2007-08 में बढ़कर 36 फीसदी पर पहुँचने का अनुमान व्यक्त किया गया था। सीएमआईई ने कहा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की बचत में भारी गिरावट आने के अनुमान से हमें वर्ष 2008-09 में बचत की दर घटकर 34 फीसदी पर आने का अंदेशा है।

बंद पंपों को शुरू करेगी एस्सार ऑइल

निजी क्षेत्र की तेल शोधन कंपनी एस्सार ऑइल अपने बंद पड़े 1250 पेट्रोल पंपों में से 70 प्रतिशत को इस वर्ष के अंत तक फिर चालू करेगी।
कंपनी के प्रवक्ता ने यहाँ शुक्रवार को ईंधन पर आयोजित एक सम्मेलन के दौरान बताया उत्तर भारत के अधिकांश पेट्रोल पंपों को अगले माह से फिर चालू किया जाएगा। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी इन्हें चलाया जाएगा। कंपनी दक्षिण और पश्चिमी भारत में अगस्त माह में ही करीब साढ़े तीन सौ पेट्रोल पंपों को फिर से चालू कर चुकी है।
हाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड कीमतों को देखते हुए निजी क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों के सामने विकट समस्या आ गई थी, जिसे देखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज और एस्सार ऑइल ने अपने पेट्रोल पंपों को बंद कर दिया था और कई अन्य कंपनियाँ जो इस कारोबार में उतरना चाहती थी, उनकी योजना अधर में रह गई थी। एस्सार की गुजरात के वाडीनार में दो लाख 10 हजार बैरल प्रति दिन की शोधन इकाई कंपनी ने पिछले साल अप्रैल में ही भारी नुकसान को देखते हुए सभी पेट्रोल पंपों को बंद कर दिया था। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों की तुलना में कच्चे तेल की ऊँची कीमतों के कारण निजी क्षेत्र के उत्पाद महँगे थे और इस कारण निजी कंपनियों को खासी दिक्कतें आ रही थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें जो जुलाई में 147.23 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई थी। फिलहाल इसकी तुलना में आधे पर आ गई हैं। प्रवक्ता ने बताया अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों को देखते हुए घरेलू दामों में पहले का बड़ा अंतर अब काफी कम हो गया है, इसलिए कंपनी ने धीरे-धीरे अपने खुदरा कारोबार को फिर से प्रारंभ कर दिया है।

Monday, October 13, 2008

एक जैसे दो नायक

अक्टूबर में देश-दुनिया के दलित तथा दूसरे लोग अपने दो महान नेताओं-बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर तथा कांशीराम का स्मरण करते हैं। डा. अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। दूसरी ओर कांशीराम ने बाबासाहेब के अधूरे कारवां को बहुत आगे ले जाने तथा इसे एक हद तक व्यावहारिक आकार देने के बाद 9 अक्टूबर 2006 को महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। 1956 में बाबासाहेब के बौद्ध धर्म में आने के बाद से नागपुर में प्रत्येक वर्ष 14 अक्टूबर को दलित चेतना को एक नया आयाम मिलता रहा है। इस दिन दलित समुदाय के लोग हिंदू सामाजिक ढांचे के अन्यायों से मुक्ति का जश्न मनाते हैं और उन 22 शपथों को याद करते हैं जो इस दिन डा. अंबेडकर ने उन्हें दी थीं। उस स्थान का नाम 'दीक्षा भूमि' रख दिया गया है। देश के अलग-अलग स्थानों से लाखों दलित इस दिन यहां एकत्र होकर अपने प्रिय नेता का स्मरण करते हैं। आज नागपुर की दीक्षा भूमि वास्तव में दलितों और बौद्धों के लिए एकसमान रूप से तीर्थस्थल बन गई है। इस तीर्थस्थल का एक विलक्षण पहलू यह है कि यहां लोग मिठाई या फूल जैसी चीजें नहीं चढ़ाते। इसके बजाय वे बस अपने आदर्श के समक्ष सम्मान प्रकट करते हैं और जब घर लौटते हैं तो मेले से स्मृति चिह्नं के रूप में अंबेडकर साहित्य, कैसेट, कैलेंडर और लोगो ले जाते हैं। यहां अलग-अलग राजनीतिक-सामाजिक समूहों के लोग एकत्र होते हैं और उस संदेश के प्रति लोगों की चेतना जागृत करते हैं जो बाबासाहेब ने दिया था। जो लोग यहां नहीं पहुंच पाते वे अपने-अपने स्थानों में समारोहों का आयोजन करते हैं।बाबासाहेब ने तत्कालीन बंबई में 31 मई 1936 को एक सम्मेलन में बौद्ध धर्म ग्रहण करने का प्रस्ताव पारित कराया था, लेकिन उन्होंने 20 वर्ष का इंतजार करने के बाद इस पर अमल किया। उन्होंने कहा था कि धर्म एक पैतृक संपत्तिबनकर रह गया है। यह किसी मौलिकता के बिना एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाता है। दलितों का मतांतरण यदि होता है तो यह धर्म के मूल्यों पर पूरे विचार-विमर्श के बाद होगा। अंबेडकर ने इस विचार का भी खंडन किया कि मतांतरण कोई राजनीतिक कदम है। वह जानते थे कि दलित यदि मतांतरित होते हैं तो उन्हें अपने राजनीतिक अधिकार गंवाने पड़ेंगे, बावजूद इसके उन्होंने मतांतरण का फैसला किया। बाबासाहेब ने इस पर भी जोर दिया कि यद्यपि यह सत्य है कि सभी धर्म यह सिखाते हैं कि जीवन का उद्देश्य उस धर्म द्वारा परिभाषित सत्य की खोज करना है, लेकिन सत्य क्या है, इसकी परिभाषा सभी धर्मो द्वारा अलग-अलग की जाती है। इसके अतिरिक्त वे सत्य प्राप्त करने के साधनों तथा पद्धति के मामले में भी एकरूप नहीं हैं। यह एक तथ्य है कि बाबासाहेब ने धर्म त्यागने का फैसला सामाजिक, राजनीतिक और दूसरे आंदोलन छेड़ने के बाद ही किया। जब तक वह मतांतरित हुए तब तक वह दलितों के लिए ज्यादातर राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त कर चुके थे।मान्यवर कांशीराम ने दलितों के पढ़े-लिखे नौकरीपेशा लोगों को प्रेरित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने बाबासाहेब अंबेडकर के अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए छह दिसंबर 1978 को बामसेफ की स्थापना की। कांशीराम के नेतृत्व से संबंधित सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि उन्होंने सबसे पहले दलितों के शिक्षित वर्ग को संगठित करने का काम किया। वह शायद बाबासाहेब के इन शब्दों से परिचित थे कि दलितों का शिक्षित वर्ग उनके साथ जुड़ नहींसका। जल्द ही कांशीराम को भी इसका अहसास हो गया। कांशीराम ने इस वर्ग को 'समाज का ऋण चुकाओ' नारा देकर संगठित किया। समय बीतने के साथ बामसेफ से छह दिसंबर 1981 को डीएस-4 का जन्म हुआ और फिर 14 अप्रैल 1984 को बसपा का। आज हम देख सकते हैं कि बसपा कहां है। लिहाजा यह कहा जा सकता है कि एक हद तक दलितों के शिक्षित वर्ग ने बाबासाहेब की इस निराशा को दूर करने की कोशिश की है कि उसने उनके साथ दूरी रखी। कांशीराम खुद भी एक शिक्षित व्यक्ति थे और पुणे में एक वैज्ञानिक के रूप में तैनात थे। आज दलित समुदाय के लाखों पढ़े-लिखे लोग दलित आंदोलन में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। यही वह वर्ग है जो बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती, पुण्यतिथि तथा उनके मतांतरित होने की वर्षगांठ पर नाना प्रकार के कार्यक्रम, बहस और चर्चा-परिचर्चा का आयोजन करता है। यह एक यथार्थ है कि कांशीराम भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने के बाबासाहेब के अधूरे मिशन को आगे बढ़ाना चाहते थे। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने खास मकसद से एक संगठन की स्थापना भी की थी, लेकिन अपनी राजनीतिक बाध्यताओं के कारण उन्हें इसे बीच में छोड़ना पड़ा था।

भुखमरी का संकट

भारत में भुखमरी घटी है, यह दावा हमारी सरकारे लंबे अरसे से करती आ रहीं है। इस दावे में दम भी हो सकती है। संभव है कि सचमुच भुखमरी घटी हो, पर घटने के बावजूद हम अभी भी इस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं कि देश में अन्न की उपलब्धता की स्थिति को संतोषजनक मान सकें। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि भुखमरी की शिकार दुनिया की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा अकेले भारत में रहता है। इसी रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि पांच साल से कम उम्र के पांच करोड़ से अधिक भारतीय बच्चे कुपोषण के शिकार है। हम चाहे तो आंकड़ों का खेल दिखाकर इस बात से इनकार कर सकते है, पर यह तय है कि इससे यह समस्या हल नहीं होगी। समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि हम उसके मूल की तलाश करे। आमतौर पर जब ऐसी समस्याओं की बात की जाती है तो हमारे राजनेता देश में जनसंख्या के अधिक दबाव का तर्क देकर बच निकलते है, लेकिन यह समस्या से पलायन के अलावा और कुछ भी नहीं है। इसकी एक वजह भारत की बड़ी आबादी है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, पर यह अकेली वजह नहीं है। इसके महत्वपूर्ण कारणों में संसाधनों का असंयमित वितरण, क्षेत्रीय असंतुलन और राजनीतिक अस्थिरता भी शामिल है।सच तो यह है कि यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी ऐसे शख्स को हैरान करने वाला है जो भारत के चुनावी घोषणापत्रों और सरकारी कार्यक्रमों को जानता हो। आजादी के बाद के इतिहास में ऐसी एक भी सरकार नहीं है जिसकी प्राथमिकताओं में गरीबी और भुखमरी हटाना शामिल न रहा हो बल्कि यही हर सरकार की पहली प्राथमिकता रही है। शिक्षा और रोजगार भी इसके बाद की बातें रहींहै। इसके बावजूद पिछले साठ साल में हम अगर अपने इस एक लक्ष्य में भी पूरी तरह सफल नहीं हो सके है तो इसे क्या माना जाए? क्या इसे हम सिर्फ अपनी बड़ी जरूरत और मामूली संसाधनों का तर्क देकर टाल सकते है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे राजनेता लगातार इस मसले पर हल्ला करते रहे है। बार-बार और हर तरह से यह प्रचारित किया गया है कि इस दिशा में बहुत कुछ हो रहा है। इसके बावजूद सच यह है और इस सच के मद्देनजर सवाल यह है कि क्या इस संबंध में जितना कहा गया सचमुच उतना किया भी गया है? अगर वास्तव में उतना किया गया और उसे करने में ईमानदारी भी बरती गई तो फिर जमीनी सच इतना वीभत्स क्यों है?

विश्व खाद्य कार्यक्रम की इस रिपोर्ट पर भरोसा करे तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारा आज तो संतोषजनक नहीं ही है, अपने कल के प्रति भी हम कुछ खास सतर्क नहीं हैं। अगर होते तो कुपोषण के शिकार बच्चों का आंकड़ा इतना विकराल क्यों होता? इसी रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि देश में 24 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे गुजारा कर रहे है। ऐसा तब है जबकि हमारे देश में गरीबी की रेखा के लिए निर्धारित शर्ते नितांत अव्यवहारिक है। देश में गरीबों की वास्तविक संख्या पर विचार किया जाए तो वह चौंकाने वाली स्थिति होगी। फिर जो गरीबी रेखा के नीचे जी रहे है उनका हाल क्या होगा, समझा जा सकता है। रिपोर्ट तो यह बताती है कि गरीबी की रेखा के नीचे जीने वालों की आमदनी का 70 फीसदी हिस्सा भोजन पर ही खर्च हो जाता है। मौजूदा सच्चाई यह है कि इतना खर्च करके भी उन्हे भरपेट और पोषक आहार नहीं मिल पाता है। पिछले चार-पांच वर्षो में महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ी है उसने गरीबों को इस लायक नहीं छोड़ा है कि वे जी भी सकें। यहां तक कि मध्यमवर्गीय लोगों के लिए भी अपनी जरूरी जरूरतों को पूरा कर पाना दूभर हो गया है। फिर उस तबके का हाल क्या होगा जिसे घोषित तौर पर गरीब माना ही जाता है?

Sunday, October 12, 2008

अमिताभ बच्चन की हालत 'स्थिर'



भारत में हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन की हालत स्थिर है और दवा काम कर रही है.लीलावती अस्पताल की तरफ़ से जारी बयान के मुताबिक़ 'अमिताभ बच्चन का कई प्रकार का टेस्ट किया जा रहा है, दवाइयाँ दी जा रहीं हैं और उनकी हातल बेहतर है.'उधर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी एक पैग़ाम के ज़रिए अमिताभ बच्चन की अच्छी सेहत की कामना की और राज्य के गवर्नर के हाथों उन्हें गुलदस्ता भिजवाया है.शनिवार को अमिताभ बच्चन को पेट दर्द की शिकायत के बाद पहले नानावती अस्पताल और फिर लीलावती अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.ख़बरों के मुताबिक़ बच्चन इनसिज़नल हर्निया से ग्रसित हैं. डाक्टरों के अनुसार हर्निया की शिकायत शायद 2005 में हुए ऑपरेशन की वजह से हुई है.वर्ष 2005 में होने वाले ऑपरेशन से पहले अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन फ़िल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान ज़ख़्मी हुए थे.


अस्पताल में अभिषेक बच्चन
अभिषेक के मुताबिक़ अमिताभ को दो दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ सकता है

अस्पताल के एक प्रवक्ता के अनुसार 'ख़ून जाँच और सीटी स्कैन की रिपोर्ट इतवार को दोपहर के बाद मिल जाएगी और इसी रिपोर्ट के आधार पर आगे का इलाज किया जाना है.'शनिवार को अमिताभ बच्चन के बेटे और बॉलीवुड के स्टार अभिषेक बच्चन ने संवाददाताओं को बाताया था कि अमिताभ बच्चन पर इलाज का असर हो रहा है और डाक्टरों ने उन्हें कम से कम दो दिनों तक अस्पताल में भर्ती रखने की राय दी है.समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार रात को पत्नी जया बच्चन अस्पताल में ही रुकी रहीं जबकि बेटा अभिषेक बच्चन, बहू ऐश्वर्या राय बच्चन, बेटी श्वेता और परिवारिक मित्र और समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह रविवार तड़के अस्पताल से लौट गए हैं.

जन्मदिन पर बीमार:ग़ौरतलब है कि शनिवार को अमिताभ बच्चन का 66वां जन्मदिन था और जब उनके घर के बाहर बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक उन्हें बधाई देने के लिए खड़े थे तो उन्हें पेट दर्द की शिकायत पर अस्पताल ले जाया गया.पहले उन्हें नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उनकी छाती और पेट का एक्स-रे हुआ. फ़िर नानावती अस्पताल से उन्हें लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया है.दिसंबर 2005 में भी अमिताभ बच्चन को पेट में दर्द हुआ था. बाद में उनका सफल ऑपरेशन भी हुआ था.शुक्रवार तक अमिताभ बच्चन फ़िल्म 'तीन पत्ती' की शूटिंग कर रहे थे. शुक्रवार की रात को ही उन्होंने पेट दर्द की शिकायत की थी.लीलावती अस्पातल के बाहर उनके प्रशंसकों की भारी भीड़ इतवार को भी जमा है और लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अस्पताल के बाहर अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ा.

चेचन्या में भूकंप, 13 मरे

ग्रोज्नी। रूस के चेचन्या क्षेत्र में शनिवार को आए भूकंप में 13 लोग मारे गए तथा हजारों लोगों को अस्थाई शिविरों में शरण लेनी पड़ी।चेचन्या के राष्ट्रपति रमजान कादिरोव ने कहा कि हमारे यहां रविवार को चुनाव हैं। यह चुनाव बिना किसी बाधा के संपन्न होने चाहिए क्योंकि यह चेचन्या के नागरिकों के लिए एक बड़ी घटना है।एक समाचार एजेंसी के अनुसार रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 5.5 आंकी गई। आपातकालीन मंत्रालय के अनुसार भूकंप में मरने वालों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है। इसके साथ ही इसमें 105 के घायल होने की सूचना है, जिसमें से सात की हालत गंभीर बताई गई है।रूसी संवाद समिति ने कहा कि मरने वालों में एक सैनिक थाए जिसकी दीवार ढहने से मौत हुई। संवाद समिति के अनुसार किसी बड़ी क्षति की खबर नहीं है। इंटरफैक्स ने रूसी आपातकालीन मंत्रालय के हवाले से कहा है कि चेचन्या के तीन जिलों में करीब 52000 लोग बिजली से वंचित हो गए हैं। चेचेन्या के राष्ट्रपति रमजान कादिरोव ने कहा कि भूकंप के बाद उन्होंने लोगों की जरूरतों का पता लगाने के लिए विशेष आयोग के गठन का आदेश दिया है।रूस के आपातकालीन मामलों के मंत्री अख्मद डेजहेरीखोनोव ने बताया कि भूकंप के कारण चेचन्या के कई शहरों में मकानों को नुकसान पहुंचा है। भूकंप के कारण सबसे अधिक नुकसान चेचन्या की राजधानी ग्रोज्नी में हुआ है।

आंध्र में छह लोगों को जिंदा जलाया

आंध्र प्रदेश के हिंसाग्रस्त अदिलाबाद के वोट्टोली में रविवार को एक ही परिवार के दो बच्चों सहित छह व्यक्तियों को कथित तौर पर हाल की हिंसक घटनाओं के चलते जलाकर मार डाला गया।आंध्र प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की सिफारिश की है।प्रदेश के गृह मंत्री के जाना रेड्डी हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने के बाद घोषणा की कि देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के दौरान भैंसा शहर में हुए सांप्रदायिक दंगों तथा एक ही परिवार के छह लोगों के मौत की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से कराने का आदेश दिया गया है। मृतकों के घर को वतोली गांव में आज आग लगा दी गई।रेड्डी ने कहा कि हिंसाग्रस्त इलाके में सुरक्षा के कई प्रबंध किए गए हैं और अतिरिक्त बल को जिला मुख्यालय से बुलाया गया है। दिल्ली से आए त्वरित कार्यबल [आरएएफ] के जवान स्थानीय पुलिस के साथ गश्त कर रहे हैं।पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के साथ मशविरा के बाद सरकार सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए उचित राहत पैकेज की घोषणा करेगी। हालांकि पुलिस ने बताया कि भैंसा शहर को छोड़कर निर्मल एवं आसिफाबाद इलाके में स्थिति नियंत्रण में है तथा यहां हिंसा की कोई ताजा घटना नहीं हुई है।मजलिस इत्तोहादुल मुसलीमीन [एमआईएम] के अध्यक्ष और सांसद असादुद्दीन ओवाइसी ने भैंसा झड़प और वातोली घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग की। उन्होंने पूरे मामले में एक हिंदू कट्टरपंथी समूह का हाथ होने का आरोप लगाया था।

Saturday, October 11, 2008

जन्‍मदिन पर बीमार पड़े बिग-बी

Amitabh Bacchan
सदी के महानायक बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्‍चन के जन्‍मदिन पर सुबह से ही उनके मुम्‍बई स्थित आवास के बाहर हर साल की तरह इस बार भी भारी भीड़ एकत्र हुई। यह भीड़ उनके प्रशंसकों की है, जो उन्‍हें जन्‍म दिन की बधाई देना चाहते थे, लेकिन जो प्रशंसक सुबह से उत्‍साहित थे, उनके चेहरे पर तब मायूसी छा गई, जब उन्‍हें यह खबर मिली की बिग-बी कर रात से बीमार हैं।सुबह उनके परिवार वालों ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि आज वो अपने पशंसकों से मिलने नहीं आ सकेंगे। जन्‍म दिन के ठीक एक दिन पहले रात में अमिताभ बच्‍चन की तबियत खराब हो गई। हालांकि अमिताभ के परिजनों ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि उन्‍हें क्‍या समस्‍या है।
सुबह करीब साढ़े ग्‍यारह बजे अमिताभ को एंबुलेंस से नानावटी अस्‍पताल ले जाया गया, जहां के चिकित्‍सकों ने प्राथमिक जांच और सीटी स्‍कैन करने के बाद मीडिया को यह जानकारी दी है कि घबराने की कोई बात नहीं है। फिलहाल अमिताभ ठीक हैं। इसके बाद उन्‍हें लीलावती अस्‍पताल ले जाया गया है।बिग बी को अस्‍पताल ले जाने वालों में उनकी पत्‍नी जया बच्‍चन, पुत्र अभिषेक बच्‍चन और बहु ऐश्‍वर्य साथ हैं। उनके परिवार के साथ इस समाजवादी पार्टी के राष्‍ट्रीय महासचि अमर सिंह भी अस्‍पताल पहुंच गये हैं।

Sunday, October 5, 2008

एक पत्रिका से खुलती साहित्य की खिड़की



हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जब फैलते बाजारों में नित-नए रंगीन और चमकीले उत्पाद आ आकर लोगों को लुभा रहे हैं और लोग इनके मोहपाश में बँधकर अपने को धन्य समझ रहे हों तब नेट इसके मोह जाल से कैसे बच सकता है। आज नेट पर भी कई रंगीन और तमाम तरह के उत्पाद हैं और ऑनलाइन इनकी खरीदी की जा सकती है। और अब तो किताबें भी इतनी रंगीन और इतने तरह की हैं कि वे किताबों के विरोध में आई लगती हैं। हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि ने कहा कि बाजारों में घूमता हूँ निशब्द, डिब्बों में बंद हो रहा है पूरा देश, पूरा जीवन बिक्री के लिए, एक नई रंगीन किताब है जो मेरी कविता के, विरोध में आई है, जिसमें छपे सुंदर चेहरों को कोई कष्ट नहीं है। कहने की जरूरत नहीं कि नेट पर भी यही हाल है बल्कि ज्यादा बुरा हाल है कि वहाँ तमाम सुंदर चेहरे हैं जिन्हें कोई कष्ट नहीं है। बल्कि आनंद ही आनंद बल्कि सेक्स ही सेक्स है
निश्चित ही ऐसे समय में जब इंटरनेट पर अश्लीलता अपने चरम पर हो, तब कोई पत्रिका और वह भी साहित्यिक पत्रिका निकाले, यह किसी भी आश्चर्य मिश्रित सुख से कम नहीं है। साहित्यकार योगेंद्र कृष्ण का एक ब्लॉग है शब्दसृजन। यह हिंदी की साहित्यिक-सांस्कृतिक विमर्श की एक पत्रिका है। यहाँ कविताएँ हैं, संस्मरण हैं, समीक्षाएँ हैं, विवाद हैं और विश्व साहित्य की सुंदर झलकियाँ भी हैं। इस पत्रिका को पढ़ना अपने समय से रूबरू होना है।
इसकी सबसे ताजा पोस्ट में चेखव के नाटक ‘द सी ग’ को लेकर एक अभिनेत्री के संस्मरण हैं जिसमें इस नाटक के पहले प्रदर्शन की नाकामयाबी और कालांतर में अन्य प्रदर्शन की कामयाबी का आत्मीय जिक्र है।
इस ब्लॉग पर आलोचक ओम निश्चल का एक कॉलम है हाल-फिलहाल। इसी तरह हिंदी में आई नई किताबों की सारगर्भित समीक्षाएँ हैं। इसकी ताजा कड़ी में कृष्ण बलदेव वेद की डायरी ‘शमअ हर रंग मे’ की समीक्षा है। इस डायरी के कुछ अंश भी दिए गए हैं जिससे वेद साहब की कलम के कमाल की मारू झलक मिलती है।
इसमें वेद साहब ने अपने समकालीन रचनाकारों से अपनी अचूक नजर से बेहद ही बिंदास-बेहिचक ढंग से देखा-परखा और लिखा है। इसमें उन्होंने निर्मल वर्मा से लेकर अशोक वाजपेयी और त्रिलोचन से लेकर शमशेर तक को बेहद ही अनौपचारिक ढंग से याद किया है। ओम निश्चल के शब्दों में इस डायरी में अपने समकालीनों की सोहबतों की बेहतरीन गवाहियाँ दर्ज हैं।इस किताब के अलावा उदयप्रकाश की खासियतों का जिक्र करते हुए समीक्षक ने उनकी साक्षात्कार की किताब उनकी अपनी बात की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इसके अलावा कुँवर नारायण की किताब वाजश्रवा के बहाने, लीलाधर जगूड़ी के काव्य संग्रह खबर के मुँह पर विज्ञापन से ढँका है, अशोक वाजपेयी का काव्य संग्रह दुख चिट्ठीरसा है पर अच्छी समीक्षाएँ हैं। यहाँ इन कवियों की कुछ चुनिंदा कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं।
इसके अलावा हिंदी के ख्यात कवि असद जैदी की कविताओं को लेकर हुए विवाद और उनके काव्य संग्रह ‘सामान की तला’ पर भी टिप्पणी पढ़ी जा सकती है। गीताश्री की किताब स्त्री आकांक्षा के मानचित्र पर भी समीक्षा है
योगेंद्र कृष्ण के विश्व साहित्य से कुछ अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं जैसे रूस के दो महान लेखकों तुर्गनेव और टॉल्सटॉय के बीच हुए विवाद पर टॉल्सटॉय के बेटे इल्या का लेख बहुत अच्छा है और तत्कालीन समय के दो महान लेखकों के अंतरमन और विवादों की एक साफ सुथरी झलक देता है। इसके अलावा एक तस्वीर भी है जो खास है। कुछ कहती है यह तस्वीर में इराक के कवि अहमद अब्देल सारा बगदाद की एक सड़क पर कविता पाठ कर रहे हैं। यह जगह एक कार बम विस्फोट में बर्बाद हो गई थी जहाँ किताबों की दुकानें थी बौद्धिकों का अड्डा।
योगेंद्रजी की एक टिप्पणी है ब्लॉगरों के लिए कुछ विचारणीय बिंदु जिसमें आग्रह किया गया है कि भाषा की शुद्धता बरकरार रखी जाए और एक दूसरे के दोस्ताना कमेंट से आगे निकलने की कोशिश भी। यहाँ कुछ युवा कवियों की अच्छी कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं। इनमें यतीद्र मिश्र और निरंजन श्रोत्रिय की कविताएँ दृष्टव्य हैं। पत्रों के बहाने कॉलम के तहत निर्मल वर्मा और योगेंद्र कृष्ण के पत्र पठनीय हैं। इसके अलावा सरोद रानी पर अशोक चक्रधर की एक आत्मीय टिप्पणी भी है। इस ब्लॉग पर साहित्य समाचार भी पढ़े जा सकते हैं। शब्दसृजन का पता है- http://shabdsrijan.blogspot.com

5.49 फीसदी कुपोषित बच्चों की याद नहीं

कुपोषण के कारण बेमौत मारे जा रहे बच्चों के मसले पर मध्यप्रदेश सरकार आँकड़ों और तर्क- वितर्क से पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। तर्कों का तानाबाना बुनते हुए सरकार यह बता रही है कि कांग्रेस को अपने राज के दौरान 5.49 फीसदी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की याद नहीं है और वह मौजूदा 0.56 फीसदी बच्चों के कुपोषण पर शोर मचा रही है। एक तरफ सरकार यह कबूल कर रही है कि खंडवा और सतना में 93 बच्चों की मौत हुई है पर वह इनको कुपोषण का मामला मानने से इंकार कर रही है। उसका दावा है कि ये मौतें बुखार (वायरल फीवर) तथा उल्टी-दस्त से शरीर में होने वाली पानी की कमी से हुई हैं यानी दूसरी सरकारों की तरह बिलकुल वैसा ही रवैया है, जो भूख से मौतों के मामले में होता है।
यदि मान भी लें कि सारी मौतें बुखार और दस्त से ही हुई हैं तो इससे वह इंकार नहीं कर सकती कि जो बच्चे मरे, उनके परिजनों की माली हालत खस्ता थी। उन्हें कुपोषण ने नहीं तो इलाज के अभाव ने तो मौत के मुँह में धकेला ही है। क्या इस पर सरकार और संबधित जिला प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?
क्या इसे सरकार में सामूहिक नेतृत्व की कमी का मामला नहीं समझा जाए? क्या सरकार यह नहीं जानती कि जब वायरल फीवर किसी शरीर को घेरता है तो उसके इलाज के लिए कोई एंटी वायरल दवा अब तक नहीं बनी है। डॉक्टर सिर्फ एंटीबायोटिक देते हैं ताकि बुखार से घटी प्रतिरोधक क्षमता के बीच कोई जीवाणु का संक्रमण नहीं हो जाए।
विषाणु का इलाज तो खुद पीड़ित का शरीर करता है। इसके खिलाफ शरीर ही एंटीबॉडी तैयार करता है, जो उस विषाणु के असर को खत्म करता है। और यह बात क्या तर्कों का तानाबाना बुनने वाले सरकार के कारिंदों को नहीं पता कि कमजोर और कुपोषण से घिरा शरीर यह एंटीबॉडी तैयार नहीं कर पाता, जो उसकी मौत का सबब बनता है। क्या वे ये भी नहीं जानते कि पौष्टिक आहार का क्या मतलब है। इसका अर्थ प्रोटीनयुक्त आहार है। प्रोटीन ही एंटीबॉडीज तैयार करने में मददगार होता है।
यह दाल-दलिया में होता है, खीर-पूड़ी में नहीं। सरकार को किस समझदार (?) ने उनको दलिया की जगह खीर-पूड़ी का मशविरा दिया। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेहदेले की बात सही है कि दो रुपए में समोसा नहीं मिलता पर दो रुपए में दलिया और गुड़ का इंतजाम आज भी हो सकता है। सवाल यही है कि देश की आजादी के छः दशक बाद भी हम कब तक मेरी कमीज से तेरी कमीज गंदी होने का दंभ भरते रहेंगे? तकनीकी रूप से कुपोषण से मौत भले ही नहीं होती, पर इस बात को भी कोई नहीं नकार सकता कि कुपोषित शरीर पर बीमारी जानलेवा साबित होती है। आखिर हम यह कब समझेंगे कि बच्चा-बच्चा होता है फिर चाहे वह गरीब का हो या अमीर का। जो सक्षम है वे तो अपनी चिंता कर लेंगे, लेकिन गरीब के बच्चे का इलाज तो सरकार को ही करना होगा जो जनता की जेब से ही इस सबके लिए पैसे वसूलती है।

'दूध का दूध, पानी का पानी' करे सो न्याय

- रमेशचन्द्र लाहोटी
जो 'दूध का दूध, पानी का पानी' करे सो न्याय है। न्याय पाना मानव का मूलभूत नैसर्गिक अधिकार है। न्यायदान शासन का कर्तव्य है, यह नागरिक के द्वारा माँगी जाने वाली कृपा या भीख नहीं है। जिस समाज में प्राणीमात्र को न्याय नहीं मिल सकता उस समाज में स्वतंत्रता और स्वाधीनता जैसे सिद्धांतों की चर्चा करना निरर्थक है। सभ्यता और शिष्टता न्यायविहीन समाज में जीवित नहीं रह सकते। भारतीय संविधान में देश के प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने का वादा किया गया है।
न्याय की इस विशद परिकल्पना को मूर्तरूप देना शासन का कर्तव्य है और शासन को अपने आधारभूत कर्र्तव्य का स्मरण दिलाते रहना, बल्कि उसे अपने कर्तव्य पालन के लिए विवश करते रहने का दायित्व भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को सौंपा है। प्रत्येक न्यायाधीश को अपने प्राथमिक कर्तव्य का स्मरण रखते हुए अपने कार्य का संपादन और उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए। न्यायाधीश को अपने कर्तव्य पथ से किंचित मात्र भी विचलित नहीं होना चाहिए। न्याय के पथ पर आरूढ़ न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों की आध्यात्मिक अर्थ में अभिव्यक्ति खलील जिब्रान ने बहुत सुंदर शब्दों (जीवन-संदेश पृष्ठ 52) में की है । वे लिखते हैं-
और न्यायप्रिय न्यायाधीशों!तुम उसे क्या सजा दोगे जो ईमानदार है लेकिन मन से चोर है? और तुम उस व्यक्ति को क्या दंड दोगे जो देह की हत्या करता है लेकिन जिसकी अपनी आत्मा का हनन किया गया है? और उस पर तुम मुकदमा कैसे चलाओगे जो आचरण में धोखेबाज और जालिम है लेकिन जो खुद संत्रस्त और अत्याचार-पीड़ित है? और तुम उन्हें कैसे सजा दोगे जिनका पश्चाताप उनके दृष्कृत्यों से अधिक है? और क्या यह पश्चाताप ही उस कानून का न्याय नहीं है जिसका पालन करने का प्रयास तुम भी करते हो? मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाकर मनुष्य के पाप तिरोहित हो जाते हैं। गंगा स्नान करके पापी भी पवित्र जीवन का आरंभ कर सकता है। किंतु कोई गंगा के जल में बैठकर ही पाप करे तो? न्यायालय को 'न्याय-मंदर' भी कहा जाता है।
न्यायाधीश न्याय की देवी का पुजारी, आराधक और साधक है। उसका चिंतन, आचरण और कृति जिस आसन पर वह बैठता है उसके आदर्श और अपेक्षाओं के अनुरूप होना ही उसे न्यायाधीश का बाना पहनने को अधिकारी पात्र बनाता है। इसीलिए न्यायाधीश का उद्देश्य, आचरण और कार्यशैली सभी उत्कृष्ट होना चाहिए। नीतिशास्त्र कहता है कि मूर्ख, व्यसनी, लोभी, प्रगल्भ, भीरू, क्रूर, अन्यायी- ऐसा न्यायाधीश नहीं होना चाहिए।
ये सभी दुर्गुण न्यायाधीश के लिए त्याज्य और वर्जित हैं। जिस व्यक्ति में इनमें से कोई भी लक्षण है वह न्यायाधीश का पद धारण करने योग्य नहीं है। विलक्षण दार्शनिक विद्वान सुकरात ने, न्यायाधीश के चार आदर्श लक्षण बताए हैं- शिष्टतापूर्वक सुनना, बुद्धिमत्तापूर्वक उत्तर देना, गंभीरतापूर्वक विचार करना तथा निष्पक्षतापूर्वक निर्णय देना। इन चार लक्षणों से युक्त न्यायाधीश निर्भीक और क्षुद्रताओं से ऊपर उठ जाता है।
महात्मा गाँधी ने एक लक्ष्य निर्धारित किया और उसे एक आदर्श के रूप में अपने सम्मुख रखा। उनके अनुसार न केवल उद्देश्य बल्कि उसके पाने का मार्ग और उपाय भी आदर्श हों। आदर्श उपायों से अनादर्श और अनादर्श उपायों से आदर्श की प्राप्ति निंदनीय और त्याज्य हैं। दोनों में समाधानविहीन विरोधाभास है। आदर्श न्यायाधीश सांसारिक न्याय के आदर्श का पालन करता रहे तो उसके हाथों से किया गया न्यायदान दिव्यता की ओर उन्मुख होने लगता है। ऐसे न्यायाधीश के न्यायासन पर आसीन होने और तपस्वी के तप में कोई अंतर नहीं होता है।
रामचरित मानस के दो प्रसंगों के परिप्रेक्ष्य में एक जिज्ञासु ने मानस के विद्वान से प्रश्न पूछा। जयंत ने तो सीता के पैर पर चोंच से प्रहार किया था। उसने सीता को चोट पहुँचाई, शारीरिक कष्ट दिया किंतु भगवान राम ने उसे केवल एक आँख लेकर छोड़ दिया। दूसरी ओर, रावण ने सीता का अपहरण तो किया किंतु लंका के सर्वोत्तम और सुंदर उपवन में स्त्री-रक्षकों की निगरानी में रखा। रावण ने सीता से अनुनय-विनय तो की, प्रलोभन भी दिए किंतु अपनी बात मनवाने के लिए कभी भी बल का प्रयोग नहीं किया। फिर भी भगवान राम ने उसके प्राण ले लिए।
जयंत को केवल दंड किंतु रावण को प्राणदंड, जबकि जयंत का अपराध अधिक गंभीर था। ऐसा क्यों? विद्वान ने उत्तर दिया कि जयंत ने कौवे का वेष धारण कर सीता पर चोंच का प्रहार किया जो कौवे का स्वभाव है किंतु रावण ने साधु का वेष धारण कर सीता का अपहरण किया और इस प्रकार साधु के वेष की मर्यादा का उल्लंघन किया। रावण का अपराध बड़ा है, जयंत का अपेक्षाकृत छोटा। इसलिए रावण को कठोर दंड मिला, जयंत को एक प्रकार की चेतावनी भर मिली।
सार यह है कि साधारण सांसारिक प्राणी का नैतिकता एवं उत्कृष्ट आचरण के पथ से यत्किंचित विलग हो जाना उतना गंभीर नहीं है जितना एक न्यायाधीश का बाना पहनने वाले व्यक्ति का विलग या विचलित हो जाना। न्यायालय कक्ष के अंदर और न्यायालय कक्ष के बाहर, वह जहाँ भी हो, अपने घर में भी आदर्श के उच्च मानदंडों का पालन और अनुसरण उससे अपेक्षित है। यदि अपने आचरण, व्यवहार और वाणी से वह किसी भी आदर्श का उल्लंघन करता है अथवा अनैतिक आचरण करता है तो वह समाज और संविधान के प्रति उत्तरदायी है। एतदर्थ, अनुभव और व्यावहारिक कठिनाइयाँ यह दर्शाती हैं कि न्यायाधीश पर महाभियोग की कार्रवाई कर, मात्र उसके पद से उसे हटा देना कारगर उपाय नहीं है, महाभियोग से न्यून दंडित करने की व्यवस्था विधान में होनी चाहिए। परंतु ऐसी व्यवस्था और उससे संबद्ध प्रक्रिया में कोई भी बात ऐसी नहीं होनी चाहिए जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आँच आए।