Sunday, October 5, 2008

एक पत्रिका से खुलती साहित्य की खिड़की



हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जब फैलते बाजारों में नित-नए रंगीन और चमकीले उत्पाद आ आकर लोगों को लुभा रहे हैं और लोग इनके मोहपाश में बँधकर अपने को धन्य समझ रहे हों तब नेट इसके मोह जाल से कैसे बच सकता है। आज नेट पर भी कई रंगीन और तमाम तरह के उत्पाद हैं और ऑनलाइन इनकी खरीदी की जा सकती है। और अब तो किताबें भी इतनी रंगीन और इतने तरह की हैं कि वे किताबों के विरोध में आई लगती हैं। हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि ने कहा कि बाजारों में घूमता हूँ निशब्द, डिब्बों में बंद हो रहा है पूरा देश, पूरा जीवन बिक्री के लिए, एक नई रंगीन किताब है जो मेरी कविता के, विरोध में आई है, जिसमें छपे सुंदर चेहरों को कोई कष्ट नहीं है। कहने की जरूरत नहीं कि नेट पर भी यही हाल है बल्कि ज्यादा बुरा हाल है कि वहाँ तमाम सुंदर चेहरे हैं जिन्हें कोई कष्ट नहीं है। बल्कि आनंद ही आनंद बल्कि सेक्स ही सेक्स है
निश्चित ही ऐसे समय में जब इंटरनेट पर अश्लीलता अपने चरम पर हो, तब कोई पत्रिका और वह भी साहित्यिक पत्रिका निकाले, यह किसी भी आश्चर्य मिश्रित सुख से कम नहीं है। साहित्यकार योगेंद्र कृष्ण का एक ब्लॉग है शब्दसृजन। यह हिंदी की साहित्यिक-सांस्कृतिक विमर्श की एक पत्रिका है। यहाँ कविताएँ हैं, संस्मरण हैं, समीक्षाएँ हैं, विवाद हैं और विश्व साहित्य की सुंदर झलकियाँ भी हैं। इस पत्रिका को पढ़ना अपने समय से रूबरू होना है।
इसकी सबसे ताजा पोस्ट में चेखव के नाटक ‘द सी ग’ को लेकर एक अभिनेत्री के संस्मरण हैं जिसमें इस नाटक के पहले प्रदर्शन की नाकामयाबी और कालांतर में अन्य प्रदर्शन की कामयाबी का आत्मीय जिक्र है।
इस ब्लॉग पर आलोचक ओम निश्चल का एक कॉलम है हाल-फिलहाल। इसी तरह हिंदी में आई नई किताबों की सारगर्भित समीक्षाएँ हैं। इसकी ताजा कड़ी में कृष्ण बलदेव वेद की डायरी ‘शमअ हर रंग मे’ की समीक्षा है। इस डायरी के कुछ अंश भी दिए गए हैं जिससे वेद साहब की कलम के कमाल की मारू झलक मिलती है।
इसमें वेद साहब ने अपने समकालीन रचनाकारों से अपनी अचूक नजर से बेहद ही बिंदास-बेहिचक ढंग से देखा-परखा और लिखा है। इसमें उन्होंने निर्मल वर्मा से लेकर अशोक वाजपेयी और त्रिलोचन से लेकर शमशेर तक को बेहद ही अनौपचारिक ढंग से याद किया है। ओम निश्चल के शब्दों में इस डायरी में अपने समकालीनों की सोहबतों की बेहतरीन गवाहियाँ दर्ज हैं।इस किताब के अलावा उदयप्रकाश की खासियतों का जिक्र करते हुए समीक्षक ने उनकी साक्षात्कार की किताब उनकी अपनी बात की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इसके अलावा कुँवर नारायण की किताब वाजश्रवा के बहाने, लीलाधर जगूड़ी के काव्य संग्रह खबर के मुँह पर विज्ञापन से ढँका है, अशोक वाजपेयी का काव्य संग्रह दुख चिट्ठीरसा है पर अच्छी समीक्षाएँ हैं। यहाँ इन कवियों की कुछ चुनिंदा कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं।
इसके अलावा हिंदी के ख्यात कवि असद जैदी की कविताओं को लेकर हुए विवाद और उनके काव्य संग्रह ‘सामान की तला’ पर भी टिप्पणी पढ़ी जा सकती है। गीताश्री की किताब स्त्री आकांक्षा के मानचित्र पर भी समीक्षा है
योगेंद्र कृष्ण के विश्व साहित्य से कुछ अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं जैसे रूस के दो महान लेखकों तुर्गनेव और टॉल्सटॉय के बीच हुए विवाद पर टॉल्सटॉय के बेटे इल्या का लेख बहुत अच्छा है और तत्कालीन समय के दो महान लेखकों के अंतरमन और विवादों की एक साफ सुथरी झलक देता है। इसके अलावा एक तस्वीर भी है जो खास है। कुछ कहती है यह तस्वीर में इराक के कवि अहमद अब्देल सारा बगदाद की एक सड़क पर कविता पाठ कर रहे हैं। यह जगह एक कार बम विस्फोट में बर्बाद हो गई थी जहाँ किताबों की दुकानें थी बौद्धिकों का अड्डा।
योगेंद्रजी की एक टिप्पणी है ब्लॉगरों के लिए कुछ विचारणीय बिंदु जिसमें आग्रह किया गया है कि भाषा की शुद्धता बरकरार रखी जाए और एक दूसरे के दोस्ताना कमेंट से आगे निकलने की कोशिश भी। यहाँ कुछ युवा कवियों की अच्छी कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं। इनमें यतीद्र मिश्र और निरंजन श्रोत्रिय की कविताएँ दृष्टव्य हैं। पत्रों के बहाने कॉलम के तहत निर्मल वर्मा और योगेंद्र कृष्ण के पत्र पठनीय हैं। इसके अलावा सरोद रानी पर अशोक चक्रधर की एक आत्मीय टिप्पणी भी है। इस ब्लॉग पर साहित्य समाचार भी पढ़े जा सकते हैं। शब्दसृजन का पता है- http://shabdsrijan.blogspot.com

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