दिल्ली में तलाक के मामलों में खासा इजाफा हो रहा है। इस मामले में इस महानगर ने अन्य महानगरों को पीछे छोड़ दिया है। दिल्ली महिला आयोग के आँकड़ों के अनुसार इस महानगर में हर साल करीब एक लाख ३० हजार शादियाँ होती हैं और दस हजार तलाक होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, पिछले पाँच सालों में तलाक लेने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। इस बात का अंदाजा सिर्फ इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दिल्ली की विभिन्न पारिवारिक अदालतों में हर वर्ष दस हजार से अधिक तलाक की अर्जियाँ डाली जाती हैं। समाज में इस तरह के बदलाव से समाजशास्त्री भी अचंभित हैं। जीवन की आपाधापी में तिल का ताड़ बन जाने वाले घरेलू मुद्दों के कारण लोग दाम्पत्य जीवन में परस्पर तालमेल बिठाने की बजाय झट से अलगाव या विवाह विच्छेद का रास्ता अपनाने लगे हैं। तलाक अब अंतिम विकल्प न रहकर पहला विकल्प बन गया है।
भारत में ऐसी मान्यता थी कि पति-पत्नी ऐसा मानकर चलते थे कि उनका बंधन सिर्फ एक जन्म के लिए नहीं बल्कि सात जन्मों के लिए है। लेकिन तलाक के मामलों की संख्या देखकर कई बार ऐसा लगता है कि कहीं वैवाहिक संस्था गुजरे जमाने की नजीर बनकर ही न रह जाए। स्थिति इतनी चिंताजनक हो गई है कि अब तो एक जन्म क्या अगर एक साल भी पति-पत्नी दाम्पत्य जीवन सफलतापूर्वक गुजार लें तो इसे एक उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। कानून के जानकारों का मानना है कि जहाँ शादी के पहले साल में तलाक की अर्जियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है वहीं पिछले दिनों एक 70 वर्षीय बुजुर्ग ने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए दिल्ली की एक अदालत में तलाक की अर्जी डालकर सबको हैरत में डाल दिया। अधिवक्ता नवीन कुमार माटा का मानना है कि वैवाहिक रिश्ते में एकरसता व नीरसता भी अब तलाक की वजह बन रही है। युवा कामकाजी दंपत्ति अपने करियर पर अधिक ध्यान देना चाहते हैं और निजी पसंद-नापसंद का उनका आग्रह अब किसी बेड़ियों में बँधने को तैयार नहीं है। कुछ ऐसे ही कारणों की वजह से राजधानी की पारिवारिक अदालतों में आजकल आपसी सहमति के आधार पर तलाक लेने वाले युवा दंपत्तियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पति-पत्नी अब एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाते, बल्कि अपनी स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं। दिल्ली में तलाक के मामलों हुई वृद्घि का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न पारिवारिक अदालतों में रोजाना औसतन तलाक की 50 अर्जी दाखिल होती हैं। अधिवक्ता अजय दिग्पाल के मुताबिक, कामकाजी पति-पत्नियों में तलाक की प्रवृति अधिक है। इसका कारण है दोनों के पास एक दूसरे लिए वक्त का न होना है।
शादी के शुरुआती कुछ सालों में तलाक लेने की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। उनके मुताबिक, 25 से 35 आयुवर्ग के दंपत्ति के लिए शादी का नजरिया निर्धारित होता है और वे उसे बदलने के लिए तैयार नहीं रहते हैं। नौकरी करने वाले पति-पत्नी अपना समय और ऊर्जा अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए नहीं करते हैं। मनोचिकित्सक व काउंसलर प्रीति श्रीवास्तव मानती हैं कि आज पति-पत्नी छोटे-मोटे कारणों के कारण तलाक का मन बना लेते हैं। उनका कहना है कि तलाक में बढ़ोतरी की एक वजह यह भी है कि लोग संस्कार भूल रहे हैं। आँकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में सालाना नौ हजार तलाक की अर्जियाँ डाली जाती हैं, वहीं मुंबई में चार हजार, बेंगलुरु में 5000 अर्जियाँ। यहाँ तक कि देश के सबसे शिक्षित प्रदेश केरल में भी पिछले दस सालों में तलाक के मामलों में 350 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पंजाब व हरियाणा में पिछले एक दशक में 150 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं अगर पारिवारिक अदालतों के न्यायाधीशों की बात करें 1960 में न्यायाधीशों के पास एक से दो मामले आते थे। 1980 में यह बढ़कर 100 से 200 तक हो गए, 1990 में यह आँकड़ा एक हजार तक पहुँच गया। अब यह बढ़कर नौ हजार तक पहुँच गया है।
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शादी के शुरुआती कुछ सालों में तलाक लेने की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। उनके मुताबिक, 25 से 35 आयुवर्ग के दंपत्ति के लिए शादी का नजरिया निर्धारित होता है और वे उसे बदलने के लिए तैयार नहीं रहते हैं। नौकरी करने वाले पति-पत्नी अपना समय और ऊर्जा अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए नहीं करते हैं। मनोचिकित्सक व काउंसलर प्रीति श्रीवास्तव मानती हैं कि आज पति-पत्नी छोटे-मोटे कारणों के कारण तलाक का मन बना लेते हैं। उनका कहना है कि तलाक में बढ़ोतरी की एक वजह यह भी है कि लोग संस्कार भूल रहे हैं। आँकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में सालाना नौ हजार तलाक की अर्जियाँ डाली जाती हैं, वहीं मुंबई में चार हजार, बेंगलुरु में 5000 अर्जियाँ। यहाँ तक कि देश के सबसे शिक्षित प्रदेश केरल में भी पिछले दस सालों में तलाक के मामलों में 350 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पंजाब व हरियाणा में पिछले एक दशक में 150 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं अगर पारिवारिक अदालतों के न्यायाधीशों की बात करें 1960 में न्यायाधीशों के पास एक से दो मामले आते थे। 1980 में यह बढ़कर 100 से 200 तक हो गए, 1990 में यह आँकड़ा एक हजार तक पहुँच गया। अब यह बढ़कर नौ हजार तक पहुँच गया है।
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