देश का महत्वाकांक्षी चंद्र अभियान आगामी बुधवार को चंद्रयान के लॉन्च के साथ ही अहम स्थान पा लेगा। इसके बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले चुनिंदा देशों में भारत भी शामिल हो जाएगा। सवाल यह है कि क्या इस मिशन से हमें वाकई बड़े फायदे होंगे या यह महज होड़ में बने रहने की कवायद है? दूसरा गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा से जूझ रहे देश के लिए यह जरूरी ही क्यों है?
चंद्रमा पर यान क्यों भेजा जाना चाहिए या क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए, इस बारे में कुछ चर्चा हुई भी हो, तो वह कुछेक हलकों से बाहर नहीं आ सकी। पर वैश्विक मंदी के इस माहौल में चंद्रयान पर खर्च होने वाले अरबों रुपयों पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है। अगर इसकी संभावित लॉन्चिंग तीन या चार महीने बाद होती तो शायद बजट का इंतजाम न हो पाने की वजह से इसे टालने का कोई बहाना खोज लिया गया होता, लेकिन देश की महत्वाकांक्षाओं और सम्मान की खातिर इस पर ज्यादा नुक्ताचीनी नहीं की गई।
चीन की तुलना में भारत की महारत लंबी कक्षाओं में अपने यान भेजने में है। चाँद पर यान भेजना चीन की तुलना में भारत के लिए आसान समझा जा रहा है, लेकिन जहाँ तक सवाल आदमी को चाँद पर भेजने का है तो इस मामले में भारत काफी पीछे है, क्योंकि भारतीय यानों में आवाज और कंपन से निपटने का अभी तक कोई इंतजाम नहीं किया जा सका है, जो अंतरिक्ष यात्राओं में किसी भी जीव को मार डालने के लिए काफी होते हैं। भारत का यान चंद्रमा पर जा रहा है, लेकिन क्यों? मकसद अगर सूचनाएँ लाने का है तो इसरो द्वारा अभी जुटाई जा रही सूचनाओं का इतना बुरा हाल क्यों है? हालत यह है कि भारतीय उपग्रहों द्वारा दिन-रात भेजी जा रही सूचनाओं के विश्लेषण का कोई ढाँचा ही अभी तक खड़ा नहीं किया जा सका है। देश का खनिज-नक्शा तैयार करने का काम इतनी बुरी हालत में है कि जिस गोदावरी बेसिन को ओएनजीसी अभी हाल तक हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं था, वहीं से रिलायंस ने कुबेर का खजाना खोज निकाला। हम अगर चंद्रमा पर खोज और सूचना के मकसद से जाना चाहते हैं तो इतने विकलांग सूचना ढाँचे के साथ इसका कोई मेल नहीं बनेगा, पर इसके बावजूद हमें देश की खनिज सम्पदा की जानकारी के लिए ऐसे अभियान अहम हो सकते हैं।
यूरोप में फ्यूजन न्यूक्लियर एनर्जी के साझा प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने के साथ ही रूसी वैज्ञानिकों ने कहा कि फ्यूजन रिऐक्टरों के लिए सबसे सुविधाजनक और फायदेमंद ईंधन हीलियम-3 हो सकता है, जिसकी मौजूदगी धरती की सतह पर न के बराबर है। पर लगातार सौर वायु (सोलर विंड्स) के संपर्क में रहने की वजह से चंद्रमा की सतह पर इसकी भरपूर मात्रा होना चाहिए।
गौरतलब है कि फ्यूजन प्रोजेक्ट में भारत की भी मजबूत भागीदारी है। यह परियोजना अगर कामयाब होती है तो 2020 के बाद दुनिया का ऊर्जा परिदृश्य बदल चुका होगा। चीनियों ने चंद्रमा से हीलियम-3 के उत्खनन को ही अपने चंद्र अभियान का मुख्य मकसद घोषित कर रखा है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपने चंद्र-विजन में हीलियम-3 को सबसे ऊँची जगह दी है। चंद्रमा पर चूँकि क्रेटरों की भरमार है और प्लेटिनम और निकिल जैसी महँगी धातु उल्कापिंडों के जरिए आती हैं और क्रेटरों में ही पाई जाती हैं, लिहाजा भविष्य में यात्रा सस्ती होने पर वहाँ से इन्हें भी धरती पर लाने की गुंजाइश बनाई जा सकती है।
अंतरिक्षीय सूचनाएँ चंद्रमा से निकल सकने वाली सबसे उपयोगी वस्तु हो सकती हैं, लेकिन यह ऐसा क्षेत्र है, जिसके विकसित होने में दशक नहीं सदियाँ लगेंगी, लेकिन चंद्रमा की सतह से हीलियम-3 निकालकर उसे धरती तक लाने और फिर उसके फ्यूजन से बिजली बनाने की बात फिलहाल भले ही दूर की कौड़ी लगे, लेकिन 1976 में आर्यभट्ट के लॉन्च के समय भारत में आर्टिफिशल सैटेलाइट्स का इस्तेमाल टेलीकॉम और टेलीविजन के लिए करने की बात भी दूर की कौड़ी ही लगती थी।
वर्ष 1985 में घर-घर कम्प्यूटर पहुँचाने की बात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का भाषण उत्तर भारतीय राजनीतिक हलकों में अगले कई बरसों तक उपहास का विषय बना रहा, लेकिन दक्षिण भारत में खासकर कर्नाटक में इसे गंभीरता से लिया गया। नतीजा सामने है। भविष्य की छलाँगें हमेशा अंधेरे में ही लगाई जाती हैं, लेकिन आधुनिक समाजों में इन्हें आम जन-विमर्श में लाने की कोशिश जरूर की जाना चाहिए।
पर इस स्थान पर यह सवाल भी हो सकता है कि चंद्रमा ही क्यों, मंगल क्यों नहीं? इन सवालों का उत्तर है कि मंगल या दूसरी जगह जाने के लिए यह पहला कदम है। सुदूर अंतरिक्ष में जाने के लिए चंद्रमा को बेस स्टेशन बनाया जा सकता है। चूँकि अब वहाँ हीलियम-3 होने के आसार जगे हैं, जो कि भविष्य का ईंधन हो सकता है। चंद्रमा में अमेरिका, रूस, जापान की भी दिलचस्पी जागी है, वे भी 2020 तक मानवयुक्त यान भेज सकते हैं। भारत के इस अभियान में अमेरिका आदि देशों ने अपने उपकरण भेजे हैं। इससे भी समझा जा सकता है कि यह भविष्य की खोज अभियानों में एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है और इन अभियानों में भारत की बड़ी भूमिका भी हो सकती है।
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Saturday, November 1, 2008
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