नई दिल्ली : बिहार में बाढ़ ने जो विनाशलीला पैदा की है उसे केवल कुदरत का कहर बताकर खारिज करना सही नहीं होगा। राजनीतिक अकर्मण्यता और इच्छाशक्ति की कमी भी बर्बादी के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। इस दफा कोसी के एकाएक मार्ग बदलने से भले ही संकट खड़ा हुआ हो, मगर राज्य की एक बहुत बड़ी आबादी साल दर साल आने वाली बाढ़ की भीषण मार झेलती रही है।
सवाल उठता है कि पिछले 60 सालों से बिहार और केंद्र में एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने कोसी, बागमती, गंडक, कमलाबलान जैसी नदियों का सही वॉटर मैनेजमंट कर इस समस्या के समाधान की दिशा में कोई ठोस कोशिश क्यों नहीं की? इसके उलट राजनेता दोषारोपण और आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहे। बाढ़ राहत के नाम पर जो बड़े घोटाले हुए, वह अलग। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा संकट के लिए राजनीतिक लापरवाही बड़े हद तक जिम्मेदार है। बिहार सरकार कोसी से पैदा इस तबाही की मार झेलने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। एकाएक कुदरत का कहर देखकर वह हतप्रभ और लाचार हो गई। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ एनवायरनमंट साइंस के प्रफेसर और पूर्व डीन विनोद कुमार जैन का मानना है कि हमारे नेतृत्व वर्ग की आदत रही है कि वह आपदा आने पर उससे जूझती हुई दिखती है, संकट आए ही नहीं इसके लिए उसके पास कोई दूरगामी योजना और वैज्ञानिक नीति नहीं होती। इस दृष्टिकोण से बिहार की अब तक की सरकारें और भी कसूरवार रही हैं, जिन्होंने न सिर्फ बाढ़ को रोकने की दिशा में, बल्कि विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े किसी भी क्षेत्र में लोगों की तरक्की और खुशहाली के लिए कुछ नहीं किया। उनका कहना है कि हम वर्तमान आपदा के लिए किसी एक सरकार को दोषी नहीं मान सकते। जैन के अनुसार बिहार की बाढ़ केंद्र सरकार के लिए भी एक 'वेकअप कॉल' की तरह होनी चाहिए कि अगर प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने के लिए साइंटिफिक तरीके से दीर्घकालिक योजना नहीं बनाई जाती, तो देश के अलग-अलग प्रांतों में इंसानों को कुदरत की मार बार-बार झेलनी पड़ेगी। जहां तक बिहार का प्रश्न है तो समय आ गया है कि समस्या को केवल मौजूदा प्ररिप्रेक्ष्य में न देखकर स्थायी निदान के लिए तैयारी की जाए। इसके लिए जरूरी है कि केंद्र सरकार खुद सक्रिय हो और नेपाल के साथ समन्वित प्रयास से बिहार और नेपाल में बाढ़ फैलाने वाली कोसी सहित अन्य नदियों के पानी के प्रबंधन के लिए मास्टर प्लान तैयार करे। इसके लिए वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों की टीम को फीजिबिलिटी अध्ययन कर पता लगाना होगा कि नेपाल में बड़े डैम या फिर अन्य निर्माणों के जरिये कोसी जैसी युवा नदी के नेचरल फ्लो को किस तरह से मैनिज किया जा सकता है। इसके साथ ही उनका यह भी मानना है कि बिहार के लोगों को मौजूदा विभीषिका से बचाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर मदद की जरूरत पड़ेगी। बाढ़ से प्रभावित कुल लोगों की संख्या जोड़ दी जाए तो यह एक करोड़ के आसपास बैठती है। ऐसे में अगर केंद्र द्वारा दिए गए हजार करोड़ रुपये से इसमें भाग दिया जाए तो प्रति व्यक्ति करीब 2000 रुपये पड़ते हैं। अपना सब कुछ लुटा चुके लोगों का इतने पैसों से क्या हो पाएगा, यह समझना आसान है।
Tuesday, September 2, 2008
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