कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार फरवरी में लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ रही है। भाजपा, वामपंथी दलों और बसपा के तीखे तेवरों और सहयोगी सपा के बदले अंदाज से कांग्रेस अक्टूबर में बुलाए गए सत्र के दौरान ही लोकसभा भंग कर नए चुनावों की घोषणा करने पर गंभीरता से मंथन कर रही है। अगर किसी तरह यह संसद सत्र चलाने में सरकार सफल भी रही तो दिसंबर में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भी सरकार लोकसभा चुनावों की घोषणा के लिए तैयार है।कांग्रेस व सरकार के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के विदेश यात्रा से वापस आने तक कांग्रेस के रणनीतिकार पूरी योजना तैयार कर लेंगे। प्रधानमंत्री से विमर्श करने के बाद फाल्गुन से पहले यानी फरवरी तक चुनाव कराने की योजना पर मुहर लगा दी जाएगी। दरअसल, 17 अक्टूबर से प्रस्तावित संसद सत्र को लेकर कांग्रेस व सरकार के रणनीतिकार सांसत में हैं। आंतरिक सुरक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर भाजपा सान चढ़ा ही रही है। चार साल तक सरकार को बाहर से समर्थन देते रहे वामपंथी दल भी घायल शेर की तरह कांग्रेस से हिसाब चुकता करने को मचल रहे हैं। चिर प्रतिद्वंदी सपा के साथ गई कांग्रेस से बसपा तो खार खाए बैठे ही है। ईसाइयों पर हमले, महंगाई व विदेश नीति जैसे मोर्चो पर अपने इन पूर्व सहयोगियों से निपटना संप्रग के लिए मुश्किल होगा।सरकार के लिए इससे भी ज्यादा दिक्कत समाजवादी पार्टी के बदले अंदाज से हुई है। जिस तरह से सपा ने केंद्र व कांग्रेस पर हमला बोला है, उसके बाद सरकार अपने नए 'संकटमोचक सहयोगी' को लेकर भी सशंकित है। इस सत्र में वैसे भी सरकार के पास कोई खास काम नहीं है। भू-अधिग्रहण संशोधन जैसा संविधान संशोधन विधेयक जरूर एजेंडे पर है। इसका पारित न होना सरकार को मुश्किल में डाल सकता है।
उधर, राज्यसभा में तो भाजपा, वामपंथी दल, बसपा व दूसरे पाले में खड़ी पार्टियों के समक्ष कांग्रेस ही नहीं, बल्कि पूरा संप्रग अल्पमत में है।सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ पार्टी व सरकार के शीर्ष नेताओं के साथ इन हालात पर विषद मंत्रणा हो चुकी है। कांग्रेस अक्टूबर वाला सत्र ज्यादा हंगामी होने पर लोकसभा भंग करने के लिए तैयार है। इन हालात में चुनाव आयोग को तैयारियों के लिए तीन माह चाहिए होंगे। इस तरह फरवरी तक सरकार खिंच जाएगी। वैसे भी कांग्रेस चाहती है कि यह संसद का आखिरी सत्र हो। अगर मई में चुनाव होते हैं तो उसे लेखानुदान लाना पड़ेगा। इससे वह बचना चाहती है।दूसरी परिस्थिति में अगर सत्र चल भी जाए तो मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू कश्मीर विधानसभाओं के चुनाव होने के बाद दिसंबर में लोकसभा भंग कर दिए जाने का विकल्प है। इसके बाद भी फरवरी तक चुनाव हो जाएंगे। दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकार मान रहे हैं कि तब तक परमाणु करार को मुकाम तक पहुंचाने का तमगा सरकार के पास होगा। इधर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश व राजस्थान से अच्छी खबर की आशा है, जो लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी व गठबंधन का उत्साह बढ़ाएगी।
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