सेतुसमुद्रम परियोजना पर जनवरी 2005 से ही निगाह रखे वैज्ञानिक व सुनामी विशेषज्ञ सत्यम मूर्ति साफ शब्दों में कहते हैं-'खतरनाक होगा रामसेतु तोड़ना।' सत्यम मूर्ति सिर्फ अकेले नहीं हैं। हर तरह के वैज्ञानिकों का कहना है कि परियोजना के बारे में सोचने के पहले पर्याप्त और गहन शोध नहीं कराया गया। भूगर्भवेत्ताओं का कहना है कि इस क्षेत्र में सक्रिय ज्वालामुखी और गतिमान प्रवाल भित्तिायां हैं। इसलिए यहां प्राकृतिक या पूर्वस्थापित संरचना से छेड़छाड़ ठीक न होगा। पारिस्थितिकी विशेषज्ञ दावा करते हैं कि सेतु बंगाल की खाड़ी के अनियमित प्रवाहों को रोकता है। इससे समुद्री जीवन की सहजता बरकरार रहती है। सेतु के तोड़े जाने से समुद्र की संवेदनशीलता असंतुलित पर असर पड़ेगा।जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक एवं चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ओसियन टेक्नोलाजी के शिक्षक एस. बद्रीनारायणन ने कहा कि प्रवाल भित्तिायां को काटा जाना अनर्थकारी होगा। ये भित्तिायां कई सामुद्रिक हलचलों को पुष्ट करती हैं। ये कई जीवों के उद्भव की कहानी भी कहती हैं। इन्हीं भित्तिायों से संकेत मिलता है कि हिंद महासागर में पानी का प्रवाह किस तरह होता रहा है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका के भी पर्यावरणविदें का स्पष्ट तौर पर मानना है कि सेतुसमुद्रम परियोजना से समुद्र के संवेदनशील पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और इंडियन रेयर अथर््स से पूर्व में जुड़े रहे वैज्ञानिकों ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि सरकार ने परियोजना पर मुहर लगाने से पहले उनके संगठनों से संपर्क नहीं किया। वैज्ञानिकों और गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि पिछली दफे आए सुनामी के बाद सरकार को यहां शोध कार्य कराना चाहिए था ताकि वास्तविकताओं का खुलासा हो। जीएसआई के पूर्व निदेशक आर. गोपालाकृष्णन कहते हैं कि इस रामसेतु के चलते 2004 में हजारों लोगों की जानें बची थीं।सुनामी विशेषज्ञ सत्यम मूर्ति उस दिन को याद करते हैं जब उन्हें सेतुसमुद्रम परियोजना की ओर से भेजा गया एक रजिस्टर्ड पत्र मिला। वे उन दिनों कनाडा में ओंट्टावा विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहे थे। हालांकि पत्र काफी देर में पहुंचा और इसमें सेतुसमुद्रम परियोजना पर राय देने की निश्चित तारीख बीत चुकी थी। इसी बीच सुनामी प्रकरण हुआ। इस पर शोध किया। बाद में मैंने अपनी राय भेज दी। उन्होंने बताया कि मैने पत्र में लिखा कि अगर अगली बार सुनामी आया तो रामसेतु तोड़कर बनाए गए सेतुसमुद्रम के चलते तटीय इलाकों में तबाही मच जाएगी। सुनामी के कारण दौड़ने वाली ऊंची-ऊंची हाहाकारी समुद्री लहरों को तब श्रीलंका-भारत समुद्री क्षेत्र के बीच थामने वाला कोई नहीं होगा। मूर्ति कहते हैं कि उन्होंने साफ तौर पर पत्र में अपनी बात कह दी- 'खतरा वास्तविक है, परियोजना पुनर्निधारित करें।'
Wednesday, September 24, 2008
सुनामी को थाम लेता है रामसेतु
इसे विचित्र संयोग ही कहेंगे। रामसेतु बचाने के लिए देश भर में चला आंदोलन बुधवार के दिन में सबसे बड़ी खबर बना। शाम होते-होते दूसरी खबर ने बड़ी खबर का रूप धर लिया। इंडोनेशिया में भयावह भूकंप। इसके बाद भारतीय गृह मंत्रालय का रेड अलर्ट जारी करना। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सुनामी आने की चेतावनी। पहली नज़र में अलग-अलग-सी दिखने वाली दोनों खबरों में अंतर्सबंध है। इसके लिए वैज्ञानिकों द्वारा दी गई चेतावनियों को धैर्य और ध्यान से समझना होगा।बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच शार्टकट समुद्री रास्ता तैयार करने की योजना का नाम है सेतुसमुद्रम परियोजना। इस परियोजना पर अमल तभी हो सकेगा जब रामसेतु (एडम ब्रिज) के बीच का 300 मीटर का हिस्सा तोड़ा जाए। रामसेतु सेतुसमुद्रम परियोजना के बीच में पड़ता है।इसी रामसेतु को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा है। इसी रामसेतु ने वर्ष 2004 में सुनामी लहरों के छक्के छुड़ाए थे। हजारों लोगों की जान बचाई थी। विश्वास न हो तो अंतरराष्ट्रीय सुनामी सोसायटी के अध्यक्ष और भारतीय सरकार के सुनामी सलाहकार सत्यम मूर्ति की जुबानी सुनिए- 'दिसंबर 2004 की उस काली सुबह भारत और श्रीलंका के बीच भी खौफनाक लहरों ने कहर ढाने के इरादे से घुसपैठ किया। पर यह क्या..! सामने सीना ताने रामसेतु खड़ा मिला। पत्थरों और बालू से बने इस वज्र सेतु श्रृंखला से भूकंपीय लहरें टकराई। कुछ क्षण को सब कुछ थमा। कौन हटे, कौन डिगे, कौन झुके और कौन मुडे़? पर रामसेतु जस का तस। मुड़ीं लहरें। वे जितनी तेजी से टकराई, उसी तेजी से नए राह को ओर निकलीं, खुले समुद्र की ओर। बाकी बची लहरें दो तरफ छितरा गई- कुछ श्रीलंका की ओर, बाकी केरल के तटीय इलाके की तरफ। पर इन छितराई लहरों की ऊर्जा, आवेग और आक्रामकता तब तक नष्ट हो चुकी थी। कह सकते हैं, रामसेतु की इस श्रृंखला ने उस दिन केरल को बचा लिया।'नए समुद्री शार्टकट के लिए एक न्यूनतम समुद्रीय गहराई का प्रस्तावित समुद्री रास्ते में हर जगह होना जरूरी है। पर रामसेतु वाले इलाके में गहराई की जगह वज्र जैसी चंट्टानें हैं। इसे न हटाया गया तो जहाजों की चौबीसों घंटे आवाजाही के लिए नया समुद्री शार्टकट बन ही नहीं सकता। इससे एक सीधा सवाल खड़ा होता है- समुद्री शार्ट कट विकसित कर व्यापार-वाणिज्य में तेजी लाने व परिवहन समय बचाने से क्या कम महत्वपूर्ण है सुनामी को रोका जाना? पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक बहुत साफ-कहते हैं- 'दुनिया शार्टकट की राह अपनाकर तरक्की करने में जाने कितनी मुसीबतें पहले ही गले लगा चुकी है। ग्लोबल वार्मिग, ओजोन परत, पिघलते ग्लेशियर और पहाड़, मौसम का मनमानापन..। इनसे पूरी दुनिया खतरे में है। अब नई मुसीबत मोल लेने की क्या जरूरत?'
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