Sunday, September 7, 2008

हथियारबंद संघर्ष में बच्चों का इस्तेमाल

जगदलपुर। अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन ह्यूंमन राइट्स वाच ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में खुलासा किया है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में सरकार और माओवादी दोनों ही बच्चों का हथियारबंद संघर्ष में इस्तेमाल कर रहे हैं।कुल 58 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में केंद्र सरकार का उद्देश्य छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारियों और जनजागरण अभियान सलवा जुडूम के तहत बनाए गए शिविरों में रहने वाले 160 लोगों के बयान हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 29 राज्यों में से आधे राज्यों में माओवादी हिंसा फैल चुकी है। पिछले 20 वर्ष से जारी इस हिंसा में लगभग छह हजार लोग मारे जा चुके हैं। खतरनाक ड्यूटी बच्चे और छत्तीसगढ़ का संघर्ष शीर्षक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को हथियारबंद संघर्ष में शामिल करने से उनके घायल होने और मारे जाने का खतरा रहता है जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन भी है। मानवाधिकार संगठन की ओर से बच्चों की वकालत करने वाले जो बेकर ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि छत्तीसगढ़ में बच्चों को सशस्त्र संघर्ष में झोंक कर सरकार और नक्सलियों द्वारा बच्चों का इस तरह शोषण करना शर्मनाक है। विज्ञप्ति के अनुसार नक्सली अपने दलों में 16 साल से कम उम्र के बच्चों की भर्ती करते हैं। सरकार समर्थित नक्सल विरोधी अभियान सलवा जुडूम में भी बच्चों का उपयोग हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के समक्ष भी यह स्वीकार किया है कि कम उम्र के बच्चों को एसपीओ के पद पर [विशेष पुलिस अधिकारी] भर्ती किया गया था, क्योंकि उनके पास उम्र का कोई प्रमाणपत्र नहीं था।गौरतलब है कि वर्ष 2005 में दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में 3500 एसपीओ की भर्ती की गई थी, जिनमें कम उम्र के बच्चों की संख्या अधिक थी। पुलिस ने बाद में यह गलती स्वीकार करते हुए 150 बच्चों को एसपीओ के पद से हटा दिया था। दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्रालय की इस वर्ष की रिपोर्ट में सलवा जुडूम अभियान में बच्चों को शामिल किए जाने का खंडन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सलियों ने बच्चों को जबरन अपने दल में शामिल करने की कोशिश की और उनके इनकार करने पर नक्सलियों ने बच्चों के परिजनों को प्रताडि़त किया या उनकी हत्या कर दी।

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