Friday, September 5, 2008

गाली गलौज और पत्थरबाजी करके मनाते हैं नागपंचमी

वैसे तो नागपंचमी के दिन पूर्वांचल में अखाडे में कुश्ती लड़ने और बौध्दिक शास्त्रार्थ करने की परम्परा है लेकिन चंदौली जिले के विसूपुर और मंहुआरी गांव के लोग नागपंचमी को आपस में गाली गलौज और पत्थर बाजी करके मनाते हैं। खास बात यह है कि साल में एक दिन होने वाली गाली गलौज के बाद भी लोगों में आपसी भाईचारा बना हुआ है। इस अनोखी परम्परा के पीछे ऐसी मान्यता है कि जब जब इसे बन्द करने की कोशिश की गयी तब तब ये गांव दैवी आपदा की चपेट में आए, इसलिए गांव वाले नागपंचमी के दिन होने वाली इस गाली गलौज के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। दो गांवों की सरहद पर हर साल आदमी और औरतों का जमावड़ा नागपंचमी के ही दिन लगता है जहां विसूपुर और महुंआरी गांव के लोग गांव की अच्छी पैदावार और दैवी आपदा से बचने के लिए आपस में गाली गलौज करते हैं तथा बुराई पर प्रहार करने के लिए पत्थर बाजी भी करते हैं। विसूपुर गांव के सबसे बुजुर्ग राजमणि त्रिपाठी इसकी प्राचीनता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि नाग पंचमी पर होने वाली गाली गलौज की कहानी हमारे बाबा भी सुनाया करते थे। लगभग शाम तीन बजे से शुरू होने वाले इस गाली गलौज के प्रोग्राम में महिलाएं अपने अराध्य को जगाने के लिए कजरी और सोहर गाती हैं, और जब इष्ट देव प्रसन्न हो जाते हैं तब शुरू होता है एक दूसरे के ऊपर छीटा कशी का दौर। इस गांव की महिलाएं उस गांव की लड़की को अपने गांव के लड़के से ब्याहने की गाली देती हैं, तो दूसरे गांव की महिलाएं भी ऐसी ही गाली देकर उन्हें ललकारती हैं। महिलाओं की इस मीठी गाली का यह दौर लगभग एक घंटे तक चलता है। इधर पुरुष वर्ग भी अपने पूरे दमखम के साथ एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। इस गाली परम्परा का कारण पूछने पर इन्द्रावती काकी बताती हैं कि यदि इसे न मनाया जाय तो गांव में बीमारी फैलने लगती है, जबकि मंहुआरी की उषा देवी बताती हैं कि इस गाली गलौज से आपसी प्रेम तो बढ़ता ही है साथ ही हमारा गांव दैवी आपदा से भी बचा रहता है। पत्थरबाजी में एक बार एक आदमी के घायल हो जाने के कारण पुलिस के सहयोग से गांव के कुछ प्रगतिशील लोगों ने इसे बंद करवा दिया था लेकिन उसी साल सूरत में फैले प्लेग की वजह से इस गांव के कुछ लोगों की मौत हो गयी। बस प्लेग को दैवी आपदा मानकर फिर इस परम्परा को शुरू कर दिया गया। महुंआरी गांव के बब्बन सिंह बताते हैं कि जिस साल इसे बंद किया गया था, इत्तेफाक से उसी साल इस गांव के कुछ लोग प्लेग से मर गये।

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