खैरलांजी गांव के भैयालाल भोतमांगे दो साल बाद इंसाफ पाकर खुश हैं। भैयालाल के परिवार के चार सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। परिवार में वह अकेले बच गए थे। इस हत्याकांड में बुधवार को भंडारा की सत्र अदालत का फैसला आया। अदालत ने छह लोगों को सजा-ए-मौत सुनाई, जबकि दो को उम्रकैद की सजा दी।सीबीआई ने इस मामले में 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय किया था। 15 सितंबर को जज एसएस दास ने तीन आरोपियों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि इन्हें बरी किए जाने के फैसले का दलित संगठनों ने विरोध किया था और इन पर लगे आरोपों की दोबारा जांच कराए जाने की मांग की थी। लेकिन बुधवार को अदालत द्वारा दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद भैयालाल भोतमांगे ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट हैं।मामला 29 सितंबर, 2006 का है। उस दिन खैरलांजी गांव में भूमि विवाद के चलते एक दलित परिवार के चार सदस्यों - सुरेखा भोतमांगे [45], बेटी प्रियंका [18] और बेटों-रोशन [23] व सुधीर [21] की हत्या कर दी गई थी। यह मामला खैरलांजी हत्याकांड के नाम से चर्चित हुआ था। इस नृशंस हत्याकांड के बाद पूरे महाराष्ट्र में विरोध प्रदर्शन हुए थे। भंडारा पुलिस ने हत्या के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया था। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।न्यायाधीश दास ने शत्रुघ्न धांडे, विश्वनाथ धांडे, प्रभाकर मांडलेकर, जगदीश मांडलेकर, राम धांडे और सकरू बेंजेवार को फांसी की सजा सुनाई, जबकि गोपाल बेंजेवार और धर्मपाल धांडे को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।बचाव पक्ष के वकील का कहना है कि वे फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगे। सीबीआई के वकील उज्जवल निकम ने फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि आज के फैसले से साबित हो गया कि अदालत ऐसे मामलों में कड़ी से कड़ी सजा सुनाती है।
Thursday, September 25, 2008
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