नयी दिल्ली ! उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में पुलिसकर्मियों को स्पष्ट संकेत दिया है कि जिन लोगों पर समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी हैं यदि वे लूटपाट जैसे संगीन अपराधों में लिप्त पाये जाते हैं तो वे सेवा में नहीं बने रह सकते!
न्यायमूर्ति अरिजित पसायत की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीन सिपाहियों को निलंबित करने के बिहार पुलिस विभाग के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए यह व्यवस्था दी!इन तीनों को अक्तूबर 1991 में पटना उच्च न्यायालय के निकट से उस समय पकडा गया था जब ये लूट के माल के साथ फरार होने की कोशिश कर रहे थे! इन तीनों के खिलाफ लूटपाट का मामला दर्ज किया गया! लेकिन प्रमाण के अभाव में निचली अदालत ने इन्हें बरी कर दिया! इस आधार पर इन्होंने उन्हें निलंबित करने के फैसले को चुनौती दी!उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा नियमों में कहीं यह नहीं लिखा है कि आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद किसी तरह की विभागीय कार्यवाही नहीं होगी ! विभागीय कार्यवाही और मुकदमे की सुनवाई दोनों अलग अलग चीज हैं और बरी किया जाना विभागीय कार्यवाही के आधार पर की गई कार्रवाई को निरस्त करने का आधार नहीं है!
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