उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आईआईटी और आईआईएम जैसे केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा लागू किए जाने के बाद बची सीटें सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को दी जाएँगी। इसके साथ ही वांछित होगा कि कटऑफ अंकों में बड़ा अंतर न हो।मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ इस बात पर एकमत थी कि इस मुद्दे पर कोई भ्रम नहीं है क्योंकि तीन न्यायाधीशों ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कोई सीट खाली नहीं रहेगी।कोटा विरोधी याचिकाकर्ताओं ने पीठ का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया कि कानून केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान 'दाखिले में आरक्षण' के कार्यान्वयन के बाद भी सीटें खाली रह गई हैं और भ्रम है।वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा में जुड़ीं सीटों को अधिनियम के कार्यान्वयन के बाद बेकार नहीं जाने देने पर रुख को स्पष्ट करने के लिए दो निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें से एक न्यायमूर्ति अरिजित पसायत और सीके ठक्कर और दूसरा न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी ने लिखा है।
न्यायमूर्ति पसायत ने कहा कि यह बहुत स्पष्ट है कि मंशा यह थी कि सीटें खाली न रहें। मंशा बेहतर शिक्षा देने की थी। न्यायमूर्ति भंडारी ने कहा कि दोनों फैसलों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ऐसी खाली सीटें सामान्य श्रेणी में जाएँगी। शुरू में ही वेणुगोपाल ने जब कहा कि खाली सीटों के पहलू पर स्पष्टीकरण की जरूरत है तो न्यायमूर्ति पसायत ने कहा कि इसे (सीटों को बेकार करना) अनुमति नहीं दी जा सकती। यह सामान्य श्रेणी में वापस जाएँगी। पसायत ने कहा आरक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए नहीं है कि यदि कोई (ओबीसी) नहीं है तो यह दूसरों को नहीं दी जाएगी। यह बहुत स्पष्ट है। मंशा बेहतर शिक्षा देने की है। कोटा विरोधी याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 432 सीटें खाली रह गई हैं और मानव संसाधन विकास मंत्रालय यदि शीर्ष अदालत के निर्णय का पालन नहीं करता तो यह अवमानना को न्योता दे रहा है। सोलिसिटर जनरल जीई वाहनवती ने हालाँकि कहा कि वह सीटें खाली हैं या नहीं इस बारे में केंद्र से निर्देश हासिल करने के बाद अदालत के पास वापस आएँगे। पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 29 सितंबर की तारीख तय की है।
Monday, September 15, 2008
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