Sunday, September 28, 2008

बेटे की तरह बनी मां-बाप का सहारा

बेटियां अब बोझ नहीं रही बल्कि बदलते वक्त ने उन्हें पुरुषों के बराबर ला खड़ा किया है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है गांव वाहला की लड़की बलवीर कौर ने। सुबह चार बजे ही पशुओं को दोह कर, पशुओं को चारा डालने से लेकर झाडू़ पोचा तक का सारा काम करने के बाद दिन भर खेतीबाड़ी का सारा काम खुद संभालती है। लड़की होने के बावजूद ट्रैक्टर चलाने में अच्छे-अच्छों को मात दे देती है। ट्रैक्टर से खुद खेत जोतना, खेत में बाट बटाना, नालियां बनाना, खेतों को पानी लगाना और खाद छिड़कना आदि उसके लिए घरेलू काम जैसा है। बलबीर कौर की जिंदगी उन लोगों की सोच पर गहरा कुठाराघात है जो सोचते हैं कि केवल लड़के ही माता-पिता का सहारा बनते हैं। एक बेटे की तरह बलबीर अपने माता-पिता का सहारा बनी हुई है। बेटे की तरफ खेतीबाड़ी कर घर परिवार संभाल उसने सिद्ध कर दिया है कि लड़कियों, लड़कों से किसी भी सूरत में कम नहीं है। खेतीबाड़ी करने के साथ-साथ वह पशु पालन विभाग से सिखलाई भी प्राप्त कर रही है। बेटे का फर्ज निभा रही बलबीर को गांव की बेटी का दर्जा भी मिला है। गांव वाहला का दौरा किया गया तो बलबीर कौर अपने खेतों में ट्रैक्टर से खेत जोत रही थी। बलबीर कौर ने बताया कि वह दसवीं कक्षा पास है। उसने बताया कि उसकी बड़ी बहन के अलावा एक बड़ा भाई है और वह घर में सबसे छोटी है। उसकी बड़ी बहन का विवाह हो चुका है। जबकि उसका भाई अपने परिवार के साथ अलग रह रहा है। बलबीर कौर ने बताया कि घर की वित्तीय हालत ठीक न होने के कारण और भाई की तरफ से काम में सहयोग न देने के कारण बुजुर्ग पिता को खेतों में कठिन मेहनत करती देखती थी तो दिल भर आता था। जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी तब अपने पिता के खेतीबाड़ी के कार्यो में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। उसका पिता घर की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए शहर में अकसर दूध देने जाया करता था। ऐसे में खेती का काम देखने के लिए कोई नहीं होता था। जिस कारण वह धीरे-धीरे खेती कार्यो में उसकी रुचि बढ़ती गई। दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने पक्के तौर पर खेतीबाड़ी के धंधे को अपना लिया। उसने बताया कि दूसरी लड़कियों को देखते कभी भी उसके मन में हार शिंगार करने का ख्याल नहीं आया है। उसने बताया कि कृषि से संबंधित हर छोटे से छोटे काम करने में उसको कोई परेशानी नहीं आती है। उसने बताया कि धान की खेती में बढ़ोतरी करने के लिए उसने आत्मा के डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डाक्टर अमरीक सिंह से धान की नई तकनीक एसआरआई की तकनीक की जानकारी हासिल कर रही है। उसके अतिरिक्त सहायक धंधे के तौर पर डेयरी फार्मिग का धंधा शुरू करने के लिए डेयरी फार्मिग की सिखलाई लेनी शुरू की है। उसके पिता अजीत सिंह ने बताया कि बलबीर कौर ने खेती का काम इस तरह अच्छे तरीके से संभाला हुआ है कि कभी पुत्र के अलग रहने की कमी महसूस नहीं हुई। उसने कहा कि यदि वह कहीं बाहर जाता है तो उसे उसके बाद किसी काम की फिक्र नहीं होती। उसने बड़े गर्व से कहा कि बलबीर कौर जैसी लड़कियां हो तो बेटों से क्या लेना। लोग तो ऐसे ही बेटों की इच्छा में पागल हुए फिरते है। बलवीर कौर की मां भजन कौर ने बताया कि उसी बेटी ने कभी भी आम लड़कियों की तरह अच्छे कपड़े, गहने या कोई और वस्तु की मांग नहीं की। घर में जो भी रुखा-सूखा बना होता है चुपचाप खा लेती है। बेटी को कठिन मेहनत करते देख उसका दिल रो पड़ता है। परमात्मा से एक ही अरदास करती है कि उसको आगे अच्छा ससुराल परिवार मिले। उनकी आस है कि कोई सरकारी नौकरी पेशे वाला लड़का मिल जाए ताकि आगे जाकर खेतीबाड़ी के धंधे से राहत मिल सके। इस मौके पर सरपंच सुरजीत कौर के बडे़ लड़के तरसेम सिंह ने बताया कि शुरू-शुरू में गांव के लोगों की तरफ से उनको बलबीर कौर को खेतीबाड़ी के धंधे से हटाने के लिए दबाव डाला जाता रहा है परंतु आज पूरे गांव वाले बलबीर कौर पर मान महसूस करते हुए गांव की बेटी का दर्जा देते हैं।

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